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ठाकुर रोशन सिंह जयंती
"तुम मेरे लिए नाराज़ मत होना, मेरी मौत अफ़सोस के लायक नहीं है, लेकिन यह खुशी के लायक होगी।"
● 22 जनवरी 1892 को, नवादा गाँव में कौशल्या देवी और जंगी सिंह के घर जन्मे, ठाकुर रोशन सिंह एक प्रबल राष्ट्रवादी थे, जो भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे।
● वर्ष 1920-21 में असहयोग आंदोलन के दौरान, ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के स्वयंसेवी समूहों की राष्ट्रवादी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। पूरे देश में भारतीयों ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया। नाराज़ स्वयंसेवकों के एक ऐसे ही समूह को ठाकुर रोशन सिंह के नेतृत्व में, शाहजहाँपुर ज़िले से बरेली क्षेत्र में भेजा गया था।
● इस दौरान परेड को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियाँ चलाईं और रोशन सिंह समेत अन्य प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया गया।
● उनके खिलाफ़ एक शिकायत दर्ज की गई और उन्हें बरेली केंद्रीय जेल में दो साल की सज़ा सुनाई गई।
● अपने साथ हुए अपमानजनक व्यवहार ने उन्हें इतना उत्तेजित कर दिया कि उन्होंने अपने साथ हुई क्रूरता का बदला लेने की कसम खाई।
● जेल से रिहा होने के बाद, उनकी मुलाकात पंडित रामप्रसाद बिस्मिल से हुई, जिन्होंने उन्हें तुरंत भर्ती कर लिया और नए लोगों को निशानेबाज़ी सिखाने की ज़िम्मेदारी दी।
● ठाकुर रोशन सिंह 1924 में, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) से जुड़े, जिसके सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी समेत कई अन्य क्रांतिकारी शामिल थे।
● बमरौली डकैती घटना में, गाँव के एक पहलवान से भिड़ने पर, ठाकुर रोशन सिंह ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी।
● उनकी निडरता और सच्चे साहस ने, ब्रिटिश शासन का ध्यान उनकी ओर खींचा। इसलिए, भले ही उस समय हुए काकोरी रेल कांड में वह शामिल नहीं थे, बावजूद इसके, अधिकारियों ने उन्हें पकड़ने के इस अवसर का लाभ उठाया, जिसके बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और सज़ा सुनाई गई।
● ऐसा कहा जाता है कि उन्हें पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी। एक अन्य विवरण के अनुसार, रोशन सिंह एक अन्य क्रांतिकारी, केशव चक्रवर्ती से मिलते-जुलते थे, जो काकोरी रेल कांड में शामिल थे। इसी कारण, उन्हें केशव चक्रवर्ती समझ कर काकोरी रेल कांड के लिए गिरफ़्तार किया गया था। हालाँकि रोशन सिंह ने न्यायाधीश को समझाने का प्रयास किया और गलतफ़हमी दूर करने की कोशिश की, लेकिन न्यायाधीश ने उनके सभी तर्कों को खारिज कर दिया और उन्हें रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्लाह खान और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के साथ मौत की सज़ा सुना दी। पूरे देश ने मौत की सज़ा के खिलाफ़ विरोध किया, लेकिन वह व्यर्थ साबित हुआ।
● ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद (प्रयागराज) ज़िले की मालका/नैनी जेल में फाँसी दे दी गई।
महान क्रांतिकारी "ठाकुर रोशन सिंह"(जयंती पर नमन!!💐)