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16 नवंबर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अदम्य साहस का परिचय देते हुए 36 अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार कर वीरगति को प्राप्त होने वाली महान वीरांगना, उदा देवी पासी जी के जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।

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भारत की संप्रभुता, समृद्धि और खुशहाली की पावन अभिव्यक्ति, राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' के अभिकल्पक, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं वैज्ञानिक पिंगली वेंकैया की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

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"दिवेर का युद्ध"
महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया अकबर के चाचा सुल्तान खां का सामना कुंवर अमरसिंह से हुआ कुंवर अमरसिंह ने सुल्तान खां पर भाले से भीषण प्रहार किया भाला इतने तेज वेग से मारा था कि सुल्तान खां के कवच, छाती व घोड़े को भेदते हुए जमीन में घुस गया और वहीं फँस गया
"टोप उड्यो बख्तर उड्यो, सुल्तान खां रे जद भालो मारियो | राणो अमर यूं लड्यो दिवेर में, ज्यूं भीम लड्यो महाभारत में ||"
सुल्तान खां मरने ही वाला था कि तभी वहां महाराणा प्रताप आ पहुंचे सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह को देखने की इच्छा महाराणा के सामने रखी तो महाराणा ने किसी और क्षत्रिय को बुलाकर सुल्तान खां से कहा कि "यही अमरसिंह है" सुल्तान खां ने कहा कि "नहीं ये अमरसिंह नहीं है, उसी को बुलाओ" तब महाराणा ने कुंवर अमरसिंह को बुलाया सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह के वार की सराहना की महाराणा ने सुल्तान खां को तकलीफ में देखकर कुंवर अमरसिंह से कहा कि "ये भाला सुल्तान खां के जिस्म से निकाल लो" कुंवर अमरसिंह ने खींचा पर भाला नहीं निकला, तो महाराणा ने कहा कि "पैर रखकर खींचो तब कुंवर अमरसिंह ने भाला निकाला

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