Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
,,,,क्या आप भी बचपन मे नाना- नानी, मामा-मामी, दादा -दादी या चाचा-चाची के परिवार के साथ गर्मियों की छूटियो में छत पर पानी छिड़कर खाट पर या छत पर दरी - बिस्तर बिछा कर सोये हो,,,,
तब घर में बिजली केवल पीले से चमकने वाले 0, 40, 60 और 100 वॉट के पीतल की टोपी वाले फिलामेंट बल्ब के लिए होती थी। पंखे अमीरों के घर में ही होते थे
बहुत ही यादगार दिन थे वे कभी न भूलने वाले
तब सभी के छत लगभग एक ऊँचाई के थें।
एक नियम होता था।
पहले बालटी मे पानी भरकर दो तल्ले पर छत पर पानी का छिड़काव।💦
नीचे से बिस्तर छत पर पहुँचाना ।
उसे बिछाना ताकि बिस्तर ठंडा हो जाए।
खाने के बाद, पानी की छोटी सुराही और गिलास भी छत पर ले जाना। कभी कभी रेडियो पर आकाशवाणी पर हवा-महल का प्रोग्राम सुनते थे या पुराने गीतमाला के पुराने गाने।
लेट कर आसमान देखना, तारे गिनना, उनके झुंड के आकार बनाना,छत पर लेटे लेटे ही हमने सप्तऋषि मंडल ,ध्रुव तारा और असंख्य तारों को देखा और समझा
आते-जाते हवाई जहाज को देखना ।
सुबह सुरज के साथ उठना पड़ता था। गरमियों मे सुबह-सुबह कोयल की कूक , चिड़ियों का चहचहाना , मोर की आवाज़ या मुर्गे की आवाज़ भी सुनने को मिलती थी।
फिर बिस्तर समेट कर छत से नीचे लाना। सुराही भी।
पहले किसी की छत पर कोई लेटा हो , खासकर महिला, तो दुसरे छत के लोग स्वंय हट जाते थे। यह एक अनकहा शिष्टाचार था।
रात में अचानक आंधी या बारिश आने पर पड़ोस के घर की पक्की सीढ़ियों से उतर कर नीचे आते थे क्योंकि अपने पास बांस की कुछ छोटी पुरानी ढुलमुल 10' फीट की सीढ़ी थी जिसका कभी भी गिरने डर रहता था और 14' फीट की ऊंची छत पर उतरने चढ़ने के लिए छत की मुंडेर को पकड़ कर लटक कर चढ़ना और उतरना होता था।
रात में पड़ी हल्की ठंड और ओस के कारण कपड़े बिस्तर सील जाते थे।😝
उस समय इतने मच्छर नहीं होते थे जो छत पर सोने में बाधा उत्पन्न करते ।
अब आसपास ऊँचे घर बन गए।
आसपास और हम , दोनो बदल गए हैं।😥😥
जब से हर घर मे AC, फ्रिज, कूलर और हर कमरे में पंखे आ गए है तब से ये सुनहरा दौर गायब हो गया हैं,