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*ॐ श्रीपरमात्मने नमः*
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“समर्पण एवं अहंकार”
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* एक गाय घास चरनेके लिए एक जंगलमें चली गई। शाम ढ़लनेके करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। वह डरके मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा।
दौड़ते हुए गायको सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाबके अंदर घुस गई। वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाबके अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़से भरा हुआ था। उन दोनोंके बीचकी दूरी काफी कम हुई थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे।
वह गाय उस कीचड़के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़के अंदर धंसने लगा। दोनों भी करीब-करीब गले तक उस कीचड़के अंदर फँस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे।
गायके करीब होनेके बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था। थोड़ी देर बाद गायने उस बाघसे पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगलका राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं तो खुद ही जंगलका मालिक हूं।
गायने कहा,लेकिन तुम्हारे उस शक्तिका यहां पर क्या उपयोग है? उस बाघने कहा, तुम भी तो फँस गई हो और मरनेके करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी है। गायने मुस्कुराते हुए कहा, बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शामको घर आएगा और मुझे वहांपर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़से निकालकर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा?
थोड़ी ही देरमें सचमें ही एक आदमी वहांपर आया और गायको कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया। जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरेकी तरफ कृतज्ञतापूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघको कीचड़से नहीं निकाल सकते थे क्योंकि उनकी जानके लिए वह खतरा था।
गाय समर्पित हृदयका प्रतीक है। बाघ अहंकारी मन है और मालिक सद्गुरुका प्रतीक है। कीचड़ यह संसार है। और यह संघर्ष अस्तित्व की लड़ाई है। किसीपर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है लेकिन उसकी अति नहीं होनी चाहिए। आपको किसी मित्र, किसी गुरु, किसी सहयोगीकी हमेशा ही जरूरत होती है।
राम राम जी 👏🌹🌹