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कल मैं रिक्शे से घर आई...मैंने रिक्शे वाले से पूछा- भैय्या आपके बच्चे हैं, अगर बुरा न मानें तो, कुछ छोटे कपड़े मैं उनके लिए दे दूँ,
आप पहनाओगे क्या..??
उसने कहा - जी मैम साहब...मैंने कहा - आप घर के अंदर आ जाओ सोफे पर बैठो मैं कपड़े लाती हूँ! जब तक मैं कपड़े लाई वो बाहर ही खड़ा रहा,
ये देख मैंने कहा -भैय्या बैठ जाओ और देख लो जो कपड़े आपके काम आ जायें ..काँपते हुए वो सोफे पर बैठ गया शायद उसे बुखार भी था!
मैंने कहा -ठण्ड लग रही है तो चाय बना दूँ, आप पी लो..ये सुनते ही उसकी आँखो से आंसू बहने लगे, बोला नहीं मैम साहब बहुत छोटेपन से रिक्शा चला रहा हूँ! आज तक ऐसा कोई नहीं मिला जो, इतनी इज़्ज़त दे हम जैसे लोगो को, और ये जो कपड़े हैं जो आप लोग हम जैसों को देते हैं! हम लोग इसको रोज़ न पहन कर रिश्तेदारी या शादी- पार्टी में पहन कर जाते हैं! बहुत ग़रीबी है साहब... दो हफ़्ते बाद घर जाऊंगा तब बच्चे ये कपड़े पहनेंगे बहुत दुआ देंगे मैम साहब आपको...
ये बात सुनते ही मन बोझिल सा हो गया, फ़िर... मन में यही ख्याल आया..!!
बेजान_पत्थर के आगे मंदिर या मस्जिद या चर्च या गुरूद्वारा में दान करने से, तो अच्छा है! किसी जिन्दा व्यक्ति की जरूरतें पूरी की जाएँ... आपका_क्या_विचार_है_दोस्तो..??
जिसने भी ऐसा किया उसे दिल की गहराइयों से धन्यवाद।
पटियाला कोर्ट में महज़ नौ हजार में सफाई कर्मचारी की नौकरी करने कुकुराम जी ने इंटरनेशनल लेवल पर 53 वर्ष की उम्र में बॉडी बिल्डिंग में गोल्ड मेडल जीता है। अब ऐसे लोग प्रेरणास्रोत नहीं होंगे और ऐसे लोगों का हौसलाफजाई न हो तब किसे आप प्रेरणादायक मानेंगे?
सरकारों को ऐसे लोगों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। अमेरिका हर खेलों सबसे अधिक गोल्ड मेडल इसीलिए जीतता है क्योंकि उन्होंने अपनी आर्मी और अपने खेलों में उन आदिवासी, नीग्रो इत्यादि को तवज्जो दी जिनमें अप्रतिम शाररिक शक्ति थी। भारत के केंद्र तथा राज्य की सरकारें यदि ऐसा करने लगे तब हमारी झोली में बहुत मेडल हो सकते हैं।
"शान.....
नेहा पग फेरा मे मायके आई तो नेहा की मां ने देखा...
नयी दुल्हन के चेहरे पर जो रौनक रहती है वह नेहा के चेहरे मे कहीं नहीं दिख रही है...
जो लड़की दिन भर बक-बक करती थी, एक रात मे कैसे चुप हो सकती है.....
जरुर.. कुछ ना कुछ तो बात है....
मां का दिल अनजान आंशका से घिरने लगा था वह चाह रही थी, जल्दी से बात करे...
पर पास पडो़स के लोग जो नेहा को देखने आये थे हट नहीं रहे थे...
जब पड़ोस के लोग चले गये तब मां ने धड़कते दिल से ससुराल का हाल पुछा....
नेहा ने सबकी तारीफ की बस पति के नाम पर चुप रह गई तब मां ने दुबारा पूछा...
बेटा.....दामाद जी कितने बजे लेने आयेंगे...
नेहा चुप रही... तब मां ने नेहा का हाथ पकडा़ और बोली,
बेटा शेखर कैसे है......
नेहा की आँखें भर आई.....
क्या बात है.... मुझे बता.... मैं तेरी माँ हूं...
कुछ दिक्कत है तो मुझे बोल बेटा....
नेहा तब भी चुप रही अब मां को पक्का यकीन हो गया कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है वह एकदम शातं स्वर में बोली,
नेहा मां बाप से कोई बात छुपानी नहीं चाहिए ...
तब नेहा ने रोते हुये बताया कि शेखर ने विवशता में शादी की है वह किसी और से प्यार करता है....
मैने कहा कि आपने उससे शादी क्यों नहीं की...
तो बोले करुंगा....बहन की शादी हो जाने के बाद...
और तुमको क्या तकलीफ है यहां.....
कहां थी और कहां आ गई पैसों के ढेर में बैठी हो...
देखो, यह आलमारी है कपडों और गहनों से भरा है तुम्हारे लिए एक गाडी़ डाईवर के साथ खड़ा रहेगा...
लो यह कार्ड है.... एक लाख महीना खर्चे कर सकती हो जहां मन हो जब मन हो जाओ कोई रोक-टोक नही... बस घर की इज्जत का ध्यान रखना मुझसे तुम्हारा कोई संबंध नहीं... दुनियां की नजर में बस तुम मेरी पत्नी हो। किसी को शक न हो इसलिए मैं बीच बीच में आता रहूंगा
मां....उन लोगों ने जान कर मुझे चुना...
गरीब घर की लड़की लायेगें तो वह हर बात सहेगी इतना कह कर नेहा रोने लगी...
नेहा की माँ ने कहा....बेटा...हम गरीब जरुर हैं पर अपनी बेटी गिरवी नहीं रखते.... तुझे ड़रने की जरुरत नहीं है पति नही तो ऐसी शादी का अर्थ क्या....
वो क्या तुझे छोड़ेगा तुझे अब वहां जाने की जरुरत नहीं है मेरी बेटी गरीब ही सही मेरे घर की शान है....
नेहा पहली बार अपनी मां का ऐसा रुप देख रही थी.....
"मेरा सभी माता पिता से निवेदन है कि शादी असफल होने पर अपनी बेटी का स्वागत करें, न कि उसको ताना मारे, उसके बुरे हालात में साथ दे, एक तलाकशुदा बेटी अच्छी है एक मरी हुई बेटी के मुकाबले.."
#कुली नंबर 36 हूँ, इज्जत का खाती हूं, बच्चों को बनाऊंगी अफसर। मध्य प्रदेश, कटनी रेलवे स्टेशन पर 45 मर्दों के बीच अकेली कुली है संध्या !..
“भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा है। उपरवाले ने मुझसे मेरा हमसफ़र छीन लिया, इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी, मैं संघर्ष करूँगी।