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दार्शनिक, चिंतक के शब्द का महत्व है। लेकिन जब ईश्वर के शब्द हो तो उसका महत्व बहुत समग्रता में होता है।
गीता में एक शब्द है,
समत्व।
सुखेदुःखे समेकृत्वा,
लाभालाभौ जया जैयो।
इसका अर्थ आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक कई अर्थों है।
आध्यात्मिक इतना ही पर्याप्त है कि यह ईश्वर कि वाणी है, और किसी व्याख्या कि आवश्यकता नहीं है।
विज्ञान कि दृष्टि से देखें तो सारा चिकित्सा विज्ञान इस पर चलता है कि शरीर में सब कुछ एक औसत मात्रा में है। यदि वह संतुलित मात्रा से बढ़ जाय या कम हो जाय तो शरीर बीमार है। फिर हम कारणों पर विचार करके, उपचार करते है।
लेकिन मेरी दृष्टि मनोविज्ञान पर अधिक है। जिससे अधिकतर लोग पीड़ित है।
सवेंदना , भावना और स्पंदन ( emotion, feeling) से चलती है। इसी से दुख , सुख, पीड़ा , कष्ट, प्रेम , वियोग सभी कुछ है।
बहुत सारे विद्वान , दार्शनिक, बुद्ध पुरूष इसके निषेध कि बात करते है।
जिससे अब हम गलत कह सकते है। एक चिंतक ने कहा था, जब विज्ञान पूर्णता के साथ प्रकट हो जायेगा तो इस संसार में एक ही धर्म रहेगा। वह है, कृष्ण।
यदि हमारे शरीर में सब कुछ संतुलित मात्रा में है। फिर सवेंदना भी में होगी।
यह सवेंदना स्थिर और अपने संतुलित मात्रा में रहे इसके लिये ईश्वर कहते है।
समत्व भाव में रहो।
इसको सरलता से समझने के लिये, एक हॉलीवुड कि फ़िल्म है, 'equilibrium ' देखनी चाहिये। अधिकतर लोग इसे ऐक्शन फ़िल्म के रूप में देखते है। लेकिन इसका संदेश बिल्कुल अलग है।
फ़िल्म यह दिखाती है कि world war3 हो गया। परमाणु अस्त्रों का प्रयोग हुआ। संसार में कुछ लाख लोग ही बचते है। वह तकनीकी रूप से बहुत योग्य हो गये। उन्होंने एक फ़ादर को चुना।
फ़ादर के पास एक काउंसिल है। काउंसिल और फादर यह निर्णय लेते है कि युद्ध का कारण मनुष्य का emotion, feeling है।
उनका निष्कर्ष तार्किक लगता है। क्रोध, ईष्र्या, लालच, महत्वाकांक्षा सभी कुछ भावना से ही पैदा हो रहे है।
उन्होंने एक दवा विकसित किया, जो भावना को नष्ट कर दे, उसके लिये एक खतरनाक सेना बनाते है। जो हर 24 घँटे पर लोगों को यह दवा दे जिससे लोग भावना को महसूस न कर सके।
लेकिन यही भावना तो प्रेम , सौंदर्य, कला, साहित्य, दया, करुणा भी पैदा करती है। इसके बिना जीवन मरुस्थल है।
क्या तुम समझते हो कि मित्रता क्या होती है ?
प्रेम में स्वप्न, दूसरों के कदमों पर चलता है। क्या तुम इसको समझ सकते हो।
ऐसे प्रश्न फ़िल्म के नायक को झकझोर दिया। उसने विद्रोह किया तो पता चलता है कि फादर और काउंसिल वह दवा नहीं लेते है जो भावना को नष्ट करती है। इस तरह फिर से भावना ही विजित होती है।
अति और न्यून के बीच एक और भाव है। जिससे समत्व कहते है। हमारी पीड़ा यह है कि हम अति पर है या न्यून पर है। हम बीमार है। इसका उपचार एक ही है कि इसे संतुलन में लाइये योग से , ध्यान से, चिंतन से यही समत्व है।
यह तस्वीर पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहमानी नगर की है.. एक छोटे से तूफान ने इतिहास की परतों को उधेड़कर रख दिया.. और पता चला यह तो - सीता रोड है..
कुतुबमीनार, लालकिला और ढाई दिन के झोपड़े आदि इतिहासिक धरोहरो के हकीकत को बाहर लाने के लिए बस ऐसे ही हल्के फुल्के तूफानों की जरूरत है..
पोस्ट- दीपक पाण्डेय
ग्रेटर नोएडा के पंचशील ग्रीन 1 सोसाइटी के 2100 फ्लैट्स ओनर्स ने एक मंदिर बनाने के लिए आधारशिला रखी। जो 6 वर्ष से दूर दूसरे मंदिर में पूजा करने को मजबूर रहे है। उस मंदिर के बजरंग बली की मूर्ति तोडने के लिए बिल्डर्स जो पंचायत जिला परिषद का अध्यक्ष और #bjp का नेता है। वह मंदिर के आधारशिला को तोडने के लिए पूरी शक्ति लगा रखा है। पुलिस मूर्ति को तोडने के लिए सोसायटी मे खडी है।
रेसिडेंट मंदिर को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे है। जो 95% बीजेपी के सपोर्टर रहे है उनका सहयोग कोई भी बीजेपी विधायक, MP, बीजेपी का नेता नही कर रहा। एके दूके जिला स्तर के नेताओ को छोड़कर।
बहन सोनाली सिंह बाराबंकी के मेडिकल कॉलेज में MBBBS के बाद इंटर्नशिप कर रही हैं. कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण इन पर SC-ST एक्ट में केस दर्ज करवाया गया. उसमें क्लीनचिट मिली तो इन्हें कॉलेज से सस्पेंड कर दिया गया. ये तानाशाही की पराकाष्ठा है. इनकी मदद करें.
सोनाली सिंह को SC-ST एक्ट के मामले में मिली ये क्लीन चिट देख लीजिए। जांच में पाया गया कि केस गलत लगाया गया है. सोनाली ने बताया कि कॉलेज प्रबंधन से सवाल करने के कारण उनकी जिंदगी खराब कर दी जा रही है. उन्हें इंटर्नशिप नहीं करने दिया जा रहा. मामला मेयो मेडिकल कॉलेज बाराबंकी का.
नमो एक्ट काला कानून
साभार पटेल राजीव जी की वॉल से
पोस्ट Dhiraj Bhargava की वाल से।
इस अलोकत्तात्रिक अत्याचारी कानून को जनता कब तक सहती रहेगी?
जब छात्र थे तो इतिहास पर प्रश्न होने लगे तो मुझे लगा कि यह सब राजनीतिक प्रोपेगेंडा है।
वैसे भी जब तक स्वयं न अध्ययन कर ले तब तक विश्वास भी नहीं करते।
धीरे धीरे यह धुँआ छटा लेकिन भारतीय ऐकेडमिक व्यवस्था में आज भी आप घुस नहीं सकते है। जो भी लोग सोशल मीडिया के माध्यम से इतिहास को लिख रहे थे। उनको बुद्धजीवी वर्ग वाट्सएप यूनिवर्सिटी का इतिहास कहके परिहास करता है।
DU और JNU के प्रोफेसर पुष्पेश पंत को कल सुन रहा था। वह सैदव कांग्रेस के करीब रहे है। वामपंथी नहीं रहे , लेकिन उनके ही बीच उनका पूरा जीवन बिता है।
वह अपने साक्षात्कार में बता रहे थे किस तरह इंदिरा गाँधी कि अल्पसंख्यक सरकार को बचाने के लिये वामपंथियों से समर्थन के पारितोषिक के रूप में JNU को बनाया गया।
सैयद नुरुल हसन कि भूमिका प्रमुख थी। उनके नाना सज्जाद हसन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी थे।
इस तरह से पूरा इतिहास दिल्ली केंद्रित और मुगलों तक सीमित किया गया। रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, रामशरण शर्मा जैसे इतिहासकारों को स्थापित किया गया।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ कि मार्क्सवादी इतिहासकारों से पढ़े छात्र विभिन्न यूनिवर्सिटी में गये, संघ लोक सेवा आयोग में गये।
उन्होंने संपूर्णता के साथ भारतीय इतिहास और शिक्षा व्यवस्था को बदल कर रख दिया।
भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद थे। उनकी ख्याति दक्षिण एशिया से लेकर अरब तक इस्लामिक स्कॉलर की थी। आप क्या उम्मीद रखते है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था क्या होगी।
जिस देश का विभाजन ही इस्लाम के नाम पर हुआ, उसके पहले ही नहीं आने वाले पाँच शिक्षा मंत्री मुस्लिम थे।
पुष्पेश पंत अध्ययनशील, भक्कड़ स्वभाव के लेखक, चिंतक रहे है। इमरजेंसी का समर्थन करके उन्होंने अपनी गरिमा बहुत गिरा दिया था। अध्ययन, अनुभव तो है ही। शुरू के आधे घँटे सुनने योग्य है।।