2 anos - Traduzir

पहले भाईसाहब फिर भैया और अब बड़ी मंमी....
ईश्वर इतना क्रूर कैसे हो सकता है?

लास्ट टाइम जब मिली थी तो आपके आँचल से लगकर खूब रोइ थी...आपने कहा था मैं हूँ न! अब..? आप इतनी जल्दी क्यों चली गईं बड़ी मंमी। आपको तो हम सबको संभाले रखना था। संयुक्त परिवार को सालों तक आपने संभाला...और जब परिवार इतने बड़े दुःख से उबरने में लगा था...आप भी साथ छोड़ गईं??

मेरे स्कूल से लेकर कॉलेज तक कोई नहीं जानता था कि आप मेरी ताईजी हैं...सबको पता था कि आप माँ है मेरी। आपने इतना प्यार और संस्कार दिए कि स्वयं पर गर्व होता था कि आपके सानिध्य में पली बढ़ी।

बड़ी मंमी आपसे तो अंतिम बार बात भी न कर पाई...मैं......नीमच आपके बिना कुछ भी नहीं अब। अब वो मुस्कराता चेहरा कभी नहीं दिखेगा। क्रूर वक्त ने छीन लिया आपको भी।

बड़ी मंमी आपको कभी भूला नहीं पाएंगे...कभी नहीं।

ईश्वर के श्री चरणों मे खुश रहना सदा।

image
2 anos - Traduzir

बचपन की परंपरा को बनाए रखा😍

धर्म की जय हुई
अधर्म का नाश हुआ

image
2 anos - Traduzir

कुछ भावनाओं के लिये शब्द नहीं मिलते!
कौन कहता है भगवान खाते नहीं...बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं❤️🙏
सात समुंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाइ॥

image
2 anos - Traduzir

जब से जैन मुनि श्री समर्थ सागर जी और मुनि सुज्ञेय सागर जी जो कि सम्मेद शिखर तीर्थ रक्षा के लिए अनशन पर बैठे थें के प्राण त्यागने के बारे में पता चला तब से मन विचलित हो उठा।
एक ऐसा धर्म जो आक्रोश भी मौन जुलूस निकाल कर, आमरण अनशन पर बैठकर और स्वयं के देह त्याग से दिखाता हो, क्या उनके लिए हम सभी को मिलकर आवाज नहीं उठाना चाहिए?
हम सभी जानते हैं कि जैन धर्म अहिंसा को सर्वोपरि मानने वाला धर्म है। जैन होना सिर्फ एक समुदाय या धर्म का होना ही नहीं, बल्कि एक नियम के अंतर्गत जीवन जीना है। इनके बनाए नियम इतने कठोर होते हैं, जिसमे हर प्राणी, हर जीव के प्रति दया का भाव होता है। स्वयं कष्ट सहकर भी जो दूसरे जीव पर दया और अहिंसा का भाव रखते हों...ऐसे जैन धर्म के मुनि जब अपनी किसी मांग के चलते देह त्याग कर दें तो इससे ज्यादा दुःखद स्थिति क्या होगी?
खैर मैं न राजनीति में पड़ना चाहती हूँ और न ही अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की लड़ाई में।
राजनीतिक रूप से तो सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित करने की बात के लिए शिबू सोरेन केंद्र सरकार को और केंद्र सरकार शिबू सोरेन की सरकार को दोष दे रहे हैं। और अब तो वहाँ के आदिवासियों ने भी शिखर जी पर अपना दावा कर दिया है।
जैन समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि ये आस्था का केंद्र है, कोई पर्यटन स्थल नहीं। इसे पर्यटन स्थल घोषित करने पर लोग यहां मांस-मदिरा का सेवन करेंगे। इसके चलते इस पवित्र धार्मिक स्थल की पवित्रता खंडित होगी। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। और यह बात सच भी प्रतीत होती है। हम लोगों ने भी देखा है जब हरिद्वार गंगा मैया में पिकनिक स्पॉट की तरह नहाने वालों पर वहां के स्थानीय लोगों द्वारा आक्रोशित होकर कार्यवाही की गई थी।
यह भी पता चला है कि ऐसे ही पर्यटन स्थल के जैसे घूमते लोगों ने जैन तीर्थ शत्रुंजय पर्वत पर भगवान आदिनाथ की चरण पादुकाओं को भी खंडित कर दिया है।
शिखर जी जैनियों का पवित्र तीर्थ है। जैन समुदाय से जुड़े लोग सम्मेद शिखरजी के कण-कण को पवित्र मानते हैं। झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित श्री सम्मेद शिखरजी लोगों की आस्था से जुड़ा है। बड़ी संख्या में हिंदू भी इसे आस्था का बड़ा केंद्र मानते हैं। जैन समुदाय के लोग सम्मेद शिखरजी के दर्शन करते हैं और 27 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले मंदिरों में पूजा करते हैं। यहां पहुंचने वाले लोग पूजा-पाठ के बाद ही कुछ खाते पीते हैं।
जैन धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों और भिक्षुओं ने मोक्ष प्राप्त किया है।
हालांकि गुरुवार को केंद्र सरकार ने पर्यटन स्थल घोषित करने के आदेश को वापस लिया है। किन्तु यह देखना होगा कि जैन धर्म के लोगों और उनके मुनियों की मांगों पर राज्य सरकार कितना सहयोग और समर्थन देती हैं। और यह आदेश कितना अमल में लाया जाता है।
सरकारों को कम से कम हमारी आस्था के केंद्र और तीर्थ स्थलों को पर्यटन और घूमने की जगह बनाने से बचना चाहिए। यह हमारी धरोहर है, हमारी संस्कृति है और हमारा इतिहास है। इसे संजोए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।
ऐसे धर्ममुनि सदैव वंदनीय हैं जो देह त्याग कर भी धर्म और समाज को दिशा दिखाते हैं।
जैन मुनि श्री समर्थ सागर जी और श्री सुज्ञेय सागर जी को शत शत नमन🙏

2 anos - Traduzir

हमारे जीवन में अक्सर कुछ चीज़ों या बातों का बहुत प्रभाव होता है! और यह प्रभाव यूँहीं अचानक नहीं होता, वो आपकी परवरिश और वातावरण से आता है।
मैंने कई बार जिक्र किया है कि मैं एक छोटे शहर के संयुक्त परिवार में पली बढ़ी हूँ। मेरे घर मे धार्मिक माहौल बचपन से ही था। हर मंगलवार बालाजी के पाठ करना अनिवार्य शर्त होती थी, मावे की मिठाई रूपी प्रसाद के लिये। तो मक्का के दानों से राम कौन कितना बड़ा लिखता है....इसकी प्रतिस्पर्धा हम 12 बच्चों के बीच होती थी। तो कभी बिजली जाने पर माँ पिताजी ( दादा दादी) से धार्मिक कहानियां और ग्रन्थों के किस्से सुनते थे।
इसी तरह हँसते खेलते हमारे बड़ो ने कब हमे यह सब संस्कार सीखा दिए, पता ही नहीं चला।
आज यूँहीं सर्च करते समय गीता सार का यह चित्र दिख गया। आज भी याद है यह चित्र वाला कैलेंडर हमारे कमरे में लगा होता था। जिसे पापा अक्सर शेव करते समय या तैयार होते समय हमें सुनाते थे। जब पढ़ना नहीं आता था, तो पापा से सुनते थे। और जब पढ़ना सीखने लगे तो अटक अटक कर तुतला तुतला कर गीता सार बोलते थे।
पर यह आज भी जबानी याद है। पहले खेल खेल में और फिर बड़े होते होते यह संशय या कन्फ्यूजन की स्थिति में याद आने लगता।
अब वक्त के साथ घर बदला, माहौल बदला और कुछ सोच में भी परिवर्तन आया। पर नहीं बदला तो यह गीता सार को याद करने का तरीका।
जीवन में एक बार जब बहुत ही कठिन समय से गुज़र रही थी। और आगे कुछ दिखाई नहीं देता था...दिमाग शून्य हो गया था। उस समय मे, मैं रोज पापा के ऑफिस में लगातार गीता सार लिखा करती थी।
मुझे यह बात याद भी नहीं थी कि, अवसाद के उन क्षणों में मैंने कब और कितनी बार गीता सार लिखा है। पर एक दिन जब अपने घर गई हुई थी। और अपनी आदत के अनुसार पापा के ऑफिस में बैठकर उनके बहीखाते देखने लगी, तब पापा ने मुझे वो बहीखाता बताया, जो सालों से उन्होंने सम्भाल रखा था....तब खुद आश्चर्य हुआ।
यह तो तय है कि मुश्किल वक्त अपने समय और अपनी तासीर से ही गुजरता है। पर उन क्षणों में गीता सार आपके लिये हिम्मत बन कर खड़ा रहता है। वो बारिश होने से रोक नहीं सकता, पर एक छाते का अहसास आपके सिर पर हमेशा के लिये बनाए रखता है।
आज एक तस्वीर से बहुत सी यादें याद आ गई।
गीता सार कुछ पंक्तियाँ नहीं हैं, जीवन का सार है।

image

image
Soniya compartilhou um post  
2 anos

Soniya compartilhou um post  
2 anos

Soniya compartilhou um post  
2 anos

Soniya compartilhou um post  
2 anos