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परमवीर चक्र विजेता कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह जी के शहादत दिवस पर उन्हें शत शत नमन।
राजस्थान में झुंझुंनू जिले के बेरी नामक छोटे से गांव में 20 मई 1918 में ठाकुर लालसिंह के घर जन्मे पीरूसिंह चार भाइयों में सबसे छोटे थे तथा राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी में हवलदार मेजर थे। मई 1948 में छठी राजपूत बटालियन ने उरी और टिथवाल क्षेत्र में झेलम नदी के दक्षिण में पीरखण्डी और लेडीगली जैसी प्रमुख पहाडिय़ों पर कब्जा करने में विशेष योगदान दिया।
इन सभी कार्यवाहियों के दौरान पीरूसिंह ने अद्भुत नेतृत्त्व और साहस का परिचय दिया। जुलाई 1948 के दूसरे सप्ताह में जब दुश्मन का दबाव टिथवाल क्षेत्र में बढऩे लगा तो छठी बटालियन को उरी क्षेत्र से टिथवाल क्षेत्र में भेजा गया। टिथवाल क्षेत्र की सुरक्षा का मुख्य केन्द्र दक्षिण में 9 किलोमीटर पर रिछमार गली था जहां की सुरक्षा को निरन्तर खतरा बढ़ता जा रहा था।
अत: टिथवाल पहुंचते ही राजपूताना राइफल्स को दारापाड़ी पहाड़ी की बन्नेवाल दारारिज पर से दुश्मन को हटाने का आदेश दिया गया था। यह स्थान पूर्णत: सुरक्षित था और ऊंची-ऊंची चट्टानों के कारण यहां तक पहुंचना कठिन था। जगह तंग होने से काफी कम संख्या में जवानों को यह कार्य सौंपा गया। 18 जुलाई को छठी राइफल्स ने सुबह हमला किया जिसका नेतृत्त्व हवलदार मेजर पीरूसिंह कर रहे थे।
पीरूसिंह की प्लाटून जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उस पर दुश्मन की दोनों तरफ से लगातार गोलियां बरस रही थीं।अपनी प्लाटून के आधे से अधिक साथियों के मारे जाने पर भी पीरूसिंह ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार अपने साथियों को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करते रहे एवं स्वयं अपने प्राणों की परवाह न कर आगे बढ़ते रहे तथा अन्त में उस स्थान पर पहुंच गये जहां मशीन गन से गोले बरसाये जा रहे थे। उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सभी सैनिकों को भून दिया जिससे दुश्मन के गोले बरसने बन्द हो गये। जब पीरूसिंह को यह अहसास हुआ कि उनके सभी साथी मारे गये तो अकेले ही आगे बढ़ चले।
रक्त से लहू-लुहान पीरूसिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे। इतने में दुश्मन की एक गोली आकर उनके माथे पर लगी और गिरते-गिरते भी उन्होंने दुश्मन की दो खंदकें नष्ट कर दीं। अपनी जान पर खेलकर पीरूसिंह ने जिस अपूर्व वीरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय दिया वह भारतीय सेना के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। देश हित में पीरूसिंह ने अपनी विलक्षण वीरता का प्रदर्शन करते हुये अपने अन्य साथियों के समक्ष अपनी वीरता, दृढ़ता व मजबूती का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस कारनामे को विश्व के अब तक के सबसे साहसिक कारनामों में से एक माना जाता है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने उस समय उनकी माता श्रीमती जडाव कंवर को लिखे पत्र में लिखा था कि देश कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का मातृभूमि की सेवा में किए गए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ है।
जीना इसी का नाम है
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श्री आलोक सागर....IIT दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिग्री , ह्यूस्टन से पी एच डी , टैक्सास से पोस्ट डाक्टरेट ,पूर्व आर बी आई गवर्नर श्री रघुराम राजन के प्रोफेसर.... विगत 32 वर्षों से किसी भी तरह के लालच को दरकिनार कर ....मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में आदिवासियों के बीच रहते हुए उनके सामाजिक, आर्थिक , शैक्षणिक उत्थान और उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.
निजी जीवन में दिल्ली में करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक श्री आलोक सागर की मां दिल्ली के मिरांडा हाउस में फिजिक्स की प्रोफेसर , पिता भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी थे,छोटा भाई आज भी आई आई टी में प्रोफेसर है.
सब कुछ त्याग कर आदिवासियों के उत्थान के लिये समर्पित ,आदिवासियों के साथ सादगी भरा जीवन जी रहे है...रहने को घासफूस की एक झोपड़ी ,पहनने को तीन कुर्ते, आवागमन के लिए एक साइकिल-ताकि प्रकृति को नुकसान न हो.
कई भाषाओं के जानकार श्री सागर आदिवासियों से उन्हीं की भाषा में संवाद करते हैं ... उनको पढ़ना लिखना सिखाने के साथ-साथ आसपास के जंगलों में उनसे लाखों फलदार पौधौं का रोपण करवा चुके हैं ...फलदार पौधौं का रोपण करवाकर आदिवासियों में गरीबी से लड़ने की उम्मीद जगा रहे हैं...साइकिल से आते जाते बीज इकट्ठा कर आदिवासियों को बोने के लिए देते हैं.
पद्मम पुरस्कार को ठुकरा चुके श्री आलोक सागर को शत-शत नमन...🙏🙏
यह शर्म की बात है कि पूरी दुनिया जनरल जॉर्ज पैटन और इरविन रोमेल के बारे में जानती है, लेकिन असाधारण क्षमता वाले भारत के जनरल सगत सिंह राठौड़ को नहीं; वह लेफ्टिनेंट जनरल जो कभी एक युद्ध नहीं हारे व विश्व में भारत देश को महान सैन्य ताकतों वाले देश में शुमार किया।
इस से ज़्यादा दुख कि बात है कि भारतीय सेना तक के कोर्स में आज़ाद भारत के महानतम फौजी जनरल का नाम नही है। 4 लड़ाइयों के विजेता और बांग्लादेश के असल निर्माता को परम वीर चक्र तक से सम्मानित नही किया गया।
उन्होंने गोवा को आजाद कराया, ढाका पर विजय प्राप्त करके बांग्लादेश को आज़ाद कराया, चीन को हराया और पूर्वोत्तर विद्रोहियों को समाप्त किया, क्या यह भारत की अंतराष्ट्रीय सैन्य ताकतों में शुमार करना नहीं था ?
भारत-चीन युद्ध 1962 की हार के पांच साल बाद ही 1967 में हुई जंग में भारत जीता था और जीत के हीरो रहे थे राजस्थान के लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़।
उन्हें केवल गुमनामी में भेजा गया। ऐसे निष्कृष्ट राजनीति वाले देश में आपके राष्ट्रवाद का परिणाम देखिए क्यूंकि सामने वाला क्षत्रिय था और कुछ चंद लोगों को इसका श्रेय लेना था। समय आने पर उनका प्रमोशन तक रोक दिया गया और उनके जूनियर अफसर को उनकी जगह प्रमोट कर दिया गया।
जनरल सगत सिंह राठौड़ को उनके 103 वे जन्मदिवस पर अनेकानेक शुभकामनाएं।