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Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt | #any
Das neue Club Universidad de Chile 2023 Heimtrikot wurde heute vorgestellt | #any
क्या हो जब आपने मित्र Neeraj Badhwar जी से उनकी नई नवेली किताब को अपने मित्रों से खरीदने का आग्रह करवाने के लिए, ऑलरेडी एक बड़ी एमाउंट paytm करवा ली हो। साथ ही उन्हें बड़े बड़े सपने दिखाएं हो ;
आप तनिक भी चिंता न करें, यह किताब मेरे द्वारा प्रमोट होते ही ब्लॉकबस्टर हो जाएगी...अरे ब्लॉकबस्टर क्या आउट ऑफ स्टॉक हो जाएगी...अरे देखिएगा आप, लोग बुकिंग के लिए पैसे लिए बैठे होंगे पर किसी को मिलेगी नहीं!
इधर शुभ मुहूर्त निकाल कर आप प्रमोशन करने बैठें हों और किताब ऑलरेडी सोल्ड आउट हो गई...😑ऑलरेडी आउट ऑफ स्टॉक हो गई तो अब क्या ही कहें!
मुझे लगता है यह मेरी बोली का ही प्रताप है जो ऐसा हुआ, पर मैं स्वयं यह कहकर श्रेय लेना पसंद नहीं करूँगी। यह बात नीरज जी स्वयं अपने लेखों और इंटरव्यू के माध्यम से ज्यादा कहें तो यह ज्यादा सही होगा।
खैर एज अ बनिया...मैने जब कमिटमेंट कर ली तो अपने आप की भी नहीं सुनती जैसा सोचकर आप लोगों के समक्ष यह किताब प्रस्तुत है। उनकी यह दूसरी किताब है जो प्री बुकिंग में ही आउट ऑफ स्टॉक हो चुकी है। अब बुकिंग के दिन स्टॉक में आते ही इसे फिर से आउट ऑफ स्टॉक करने का बीड़ा जरूर से उठाना हैं!
मज़ाक से इतर...
नीरज जी मेरे पसंदीदा व्यंग्यकार हैं। हल्की फुल्की बातों में कमाल का ह्यूमर ढूंढ़ लेते हैं, और जब उसे अपने अंदाज में लिखते हैं, तो पाठक अपनी सारी परेशानियों को एक तरफ रखकर बस हँसते हैं। और वाकई आजकल किसी को हँसा पाना बहुत टफ जॉब है, जो नीरज जी बहुत बढ़िया तरीके से निभाते आ रहे हैं।
ढेर सारी शुभकामनाएं नीरज जी💐💐महाकाल के आशीर्वाद से आप सदैव प्रगति के नित नए सोपान तय करें💐💐💐💐
अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...
अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...
अचानक आई गर्मी से अचकचा गए मन को आज मौसम देख राहत सी मिली। सुबह उठ कर बालकनी में जाते ही ठंडी हवाओं ने एहसास दिया...मार्च आ गया है!
फागुन सा मन और होली के रंग जैसे अब आसमान में घुलने लगे हैं। जब भी ऐसा मौसम होता है तो अपने कॉलेज के समय और मेरी 'सनी' बड़ी याद आती है। मैं और प्रियंका ऐसे मौसम में बेकाम ही घर से निकल जाते थे। यूँही घूमते, कुछ चटोरापन और ढेर सारी मस्ती! उफ्फ क्या दिन थे!!
ख़ैर...आज मौसम के साथ मैं भी बाहर निकल आई। बेटे के एग्जाम हैं उसे स्कूल छोड़ना आज बड़ा सुहाना लग रहा था। आज कहीं निकलना है तो उसके स्कूल में ही इंतज़ार कर रही हूँ, उसके पेपर खत्म होने का।
बाहर का समा बहुत प्यारा है, हरे भरे बगीचे, रंगबिरंगे फूल और ढेर सारे झूले। पर यहाँ पर मुझे एलिगेंट तरीके से वेट करना है, अपने बचपन को आँखों मे दबाए मैं बैठ गई हूँ।
मन की चाहना भी अजीब होती है, जब बचपन था तो लगता था बड़ा होना कितना अच्छा है...अब बड़े हो गए तो बचपन जीने का मन करता है।
बैठे बैठे सबसे खूबसूरत बात हुई। अचानक माइक पर सबसे पहले नमो अरिहंताणं और फिर ॐ भूर भुव स्व तत्वितुर्वरेण्यम शुरू हो गया।
मुझे सुनकर तसल्ली हुई, इस कांक्रीट के जंगल मे भी बच्चे के लिए यह स्कूल चुन पाई जो कम से कम ईसाई मिशनरियों की तरह नहीं।
अब राष्ट्रगान हुआ। और जनगणमन गुनगुनाते हुए मैं फिर से वो समय जी आई जो छोड़ आए थे पीछे।
यह बात शिद्दत से महसूस की आज कि कैसा भी मन हो, राष्ट्रगान सुनते ही मन मे गर्व, कृतज्ञता और प्रेम एक साथ उमड़ उठता है। मैं लिख रही हूँ और बैकग्राउंड में चल रहा है;
इतनी शक्ति हमे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...
बाकी तो...
जब यह घर लिया था उससे पहले ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे। तो सीधे 11th फ्लोर पर आने में अजीब लग रहा था। याद है मुझे जब घर देखने आए थे तो यहाँ लिफ्ट भी नहीं लगी थी। 11 th फ्लोर चढ़कर ऊपर आए थे।
पर जब मैंने यहाँ की सारी बालकनियाँ देखी, मन एकदम खुश हो गया। बिन ज्यादा सोचे मैंने कहा मुझे पसंद है यह घर! बालकनी और चाय मेरा फेवरेट कॉम्बिनेशन है।
पर जैसे जैसे रहते गए तो यहाँ पर कबूतरों के 'आतंक' का पता चला! इस बालकनी में ढेर सारे पौधें हैं जो वो चलने ही नहीं देते। उनके एक एक पत्ते नोच ले जाते, तो कभी उनकी खाद चुग के खा जाते। हर बार जाल डालने की बात हुई, पर मैं मना करती रही। मुझे अपनी तीनों बालकनी एकदम खाली चाहिए थी। पर आखिरकार पौधों को बचाने के लिए हमे एक बालकनी में यह जाल लगाना ही पड़ा। अब यह वाली बालकनी देख के बहुत सी बातें सोच रही हूँ।
जीवन मे कई बार जो हमारी सबसे पसंदीदा चीज़ होती हैं, आपके उस चीज़ को पसन्द करने का कारण हो, या जो हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी होती हैं, वह कभी किसी और की खुशी से के लिए यूँही उपेक्षित हो जाती है। तो कभी कुछ और अच्छे में से किसी एक को चुन लेने पर समाप्त हो जाती हैं।
जीवन में सबकुछ न आपकी मर्जी से होना सम्भव हैं और न ही आपकी सुविधा से।
ख़ैर...
वैसे यहाँ पर पहले ढेर सारी चिड़ियाँ थीं, पर वो अब नहीं दिखती, वो शायद सर्वाइव ही नहीं कर पाई, अपने नियम कायदे कानून के चलते।
न वो हर कहीं खुले में अंडे देतीं थीं, न ही कोई भी दाना पानी चुग लेती। जब तक कोई घूमता रहेगा वो वहाँ फटकती नहीं। डर डर कर जीती रहीं और धीरे धीरे अपनी आबादी खत्म सी कर ली।
जबकि कबूतर जिद्दी होते हैं। कितनी बार भी उड़ाओ वो फिर से आएंगे। कुछ भी खा लेंगे। कहीं भी अंडे दे देते। गमलों में भी। कुछ भी कर के उन्होंने खुद को बनाए रखा। और अब न कौए दिखते न चिड़िया और न हो तोते...जितनी तादाद में बस कबूतर दिखते हैं।
'survival of the fittest' ही जीवन का सार है।
बाकी तो...आल इज वेल!
जब यह घर लिया था उससे पहले ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे। तो सीधे 11th फ्लोर पर आने में अजीब लग रहा था। याद है मुझे जब घर देखने आए थे तो यहाँ लिफ्ट भी नहीं लगी थी। 11 th फ्लोर चढ़कर ऊपर आए थे।
पर जब मैंने यहाँ की सारी बालकनियाँ देखी, मन एकदम खुश हो गया। बिन ज्यादा सोचे मैंने कहा मुझे पसंद है यह घर! बालकनी और चाय मेरा फेवरेट कॉम्बिनेशन है।
पर जैसे जैसे रहते गए तो यहाँ पर कबूतरों के 'आतंक' का पता चला! इस बालकनी में ढेर सारे पौधें हैं जो वो चलने ही नहीं देते। उनके एक एक पत्ते नोच ले जाते, तो कभी उनकी खाद चुग के खा जाते। हर बार जाल डालने की बात हुई, पर मैं मना करती रही। मुझे अपनी तीनों बालकनी एकदम खाली चाहिए थी। पर आखिरकार पौधों को बचाने के लिए हमे एक बालकनी में यह जाल लगाना ही पड़ा। अब यह वाली बालकनी देख के बहुत सी बातें सोच रही हूँ।
जीवन मे कई बार जो हमारी सबसे पसंदीदा चीज़ होती हैं, आपके उस चीज़ को पसन्द करने का कारण हो, या जो हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी होती हैं, वह कभी किसी और की खुशी से के लिए यूँही उपेक्षित हो जाती है। तो कभी कुछ और अच्छे में से किसी एक को चुन लेने पर समाप्त हो जाती हैं।
जीवन में सबकुछ न आपकी मर्जी से होना सम्भव हैं और न ही आपकी सुविधा से।
ख़ैर...
वैसे यहाँ पर पहले ढेर सारी चिड़ियाँ थीं, पर वो अब नहीं दिखती, वो शायद सर्वाइव ही नहीं कर पाई, अपने नियम कायदे कानून के चलते।
न वो हर कहीं खुले में अंडे देतीं थीं, न ही कोई भी दाना पानी चुग लेती। जब तक कोई घूमता रहेगा वो वहाँ फटकती नहीं। डर डर कर जीती रहीं और धीरे धीरे अपनी आबादी खत्म सी कर ली।
जबकि कबूतर जिद्दी होते हैं। कितनी बार भी उड़ाओ वो फिर से आएंगे। कुछ भी खा लेंगे। कहीं भी अंडे दे देते। गमलों में भी। कुछ भी कर के उन्होंने खुद को बनाए रखा। और अब न कौए दिखते न चिड़िया और न हो तोते...जितनी तादाद में बस कबूतर दिखते हैं।
'survival of the fittest' ही जीवन का सार है।
बाकी तो...आल इज वेल!
जब यह घर लिया था उससे पहले ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे। तो सीधे 11th फ्लोर पर आने में अजीब लग रहा था। याद है मुझे जब घर देखने आए थे तो यहाँ लिफ्ट भी नहीं लगी थी। 11 th फ्लोर चढ़कर ऊपर आए थे।
पर जब मैंने यहाँ की सारी बालकनियाँ देखी, मन एकदम खुश हो गया। बिन ज्यादा सोचे मैंने कहा मुझे पसंद है यह घर! बालकनी और चाय मेरा फेवरेट कॉम्बिनेशन है।
पर जैसे जैसे रहते गए तो यहाँ पर कबूतरों के 'आतंक' का पता चला! इस बालकनी में ढेर सारे पौधें हैं जो वो चलने ही नहीं देते। उनके एक एक पत्ते नोच ले जाते, तो कभी उनकी खाद चुग के खा जाते। हर बार जाल डालने की बात हुई, पर मैं मना करती रही। मुझे अपनी तीनों बालकनी एकदम खाली चाहिए थी। पर आखिरकार पौधों को बचाने के लिए हमे एक बालकनी में यह जाल लगाना ही पड़ा। अब यह वाली बालकनी देख के बहुत सी बातें सोच रही हूँ।
जीवन मे कई बार जो हमारी सबसे पसंदीदा चीज़ होती हैं, आपके उस चीज़ को पसन्द करने का कारण हो, या जो हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी होती हैं, वह कभी किसी और की खुशी से के लिए यूँही उपेक्षित हो जाती है। तो कभी कुछ और अच्छे में से किसी एक को चुन लेने पर समाप्त हो जाती हैं।
जीवन में सबकुछ न आपकी मर्जी से होना सम्भव हैं और न ही आपकी सुविधा से।
ख़ैर...
वैसे यहाँ पर पहले ढेर सारी चिड़ियाँ थीं, पर वो अब नहीं दिखती, वो शायद सर्वाइव ही नहीं कर पाई, अपने नियम कायदे कानून के चलते।
न वो हर कहीं खुले में अंडे देतीं थीं, न ही कोई भी दाना पानी चुग लेती। जब तक कोई घूमता रहेगा वो वहाँ फटकती नहीं। डर डर कर जीती रहीं और धीरे धीरे अपनी आबादी खत्म सी कर ली।
जबकि कबूतर जिद्दी होते हैं। कितनी बार भी उड़ाओ वो फिर से आएंगे। कुछ भी खा लेंगे। कहीं भी अंडे दे देते। गमलों में भी। कुछ भी कर के उन्होंने खुद को बनाए रखा। और अब न कौए दिखते न चिड़िया और न हो तोते...जितनी तादाद में बस कबूतर दिखते हैं।
'survival of the fittest' ही जीवन का सार है।
बाकी तो...आल इज वेल!