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आर्य: यह तुम्हारा साईं बाबा एक पाखंड से ज्यादा और कुछ नहीं है.
साईं भक्त: आप गलत कहते हो साईं बाबा भगवान् के अवतार हैं.स्वयं शिव के अवतार हैं.ब्रह्मा विष्णु
महेश तीनों साक्षात् साईं के रूप हैं.
आर्य: किसी धर्मग्रन्थ से यह अवतार वाली बात सिद्ध कर सकते हो ? साईं बाबा एक मुस्लिम
फ़कीर थे यह बात तो साईं सत्चरित में सिद्ध हो चुकी है.उन्होंने खुद अपने मुंह से कहा है
कि मैं एक यवन वंशी यानि मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ हूँ.और वो नमाज़ भी पढ़ते थे.
साईं भक्त: साईं चालीसा में अवतार हैं यह कहा गया है.
आर्य: साईं चालीसा में यह किसने लिखा है?
साईं भक्त: साईं के एक भक्त ने.
आर्य: स्वयं साईं ने तो नहीं लिखा? तुम लोग साईं की बात मानोगे या भक्त की?
साईं भक्त: लेकिन साईं के चमत्कारों को देखकर तो सारी दुनिया उनके सामने झुकती है.
आर्य: ऐसे जादू भरे चमत्कार तो हमारी गली में तमाशा दिखने वाले कलाकार भी दिखाते हैं तो
क्या उनको भी ईश्वर कहोगे आप?
साईं भक्त: जी नहीं वो कहाँ और हमारे साईं बाबा कहाँ?
आर्य: देखिये श्रीमान जी जब सन १९५० के आस पास राम जन्मभूमि विवाद इलाहाबाद उच्च
न्यायालय में दायर किया गया तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिन्दू मुस्लिम सौहार्द
के लिए यह साईं बाबा का जिन्न बोतल से निकाला.क्योंकि उन्हें दर था कि देश में
अराजकता फ़ैल सकती है और हमारी सरकार पर संकट आ सकता है.
साईं भक्त: आप गलत कह रहे हैं.साईं बाबा तो उससे पहले से पूजे जा रहे हैं.
आर्य: श्रीमान जी ध्यान से सुनिए! आर्य समाज नामक संस्था के पाखंड खंडन से आज तक
कोई पाखंडी नहीं बचा है.किन्तु आर्य समाज के साहित्य में भी १९५० से पहले कहीं
किसी साईं बाबा का नाम नहीं आता है.इससे पता चलता है कि १९५० से पहले आम
जनमानस में साईं बाबा नाम की कोई चर्चा ही नहीं थी.
साईं भक्त: साहित्य में नाम नहीं आता तो क्या साईं बाबा नहीं थे?
आर्य: ऐसा मैंने नहीं कहा है मैंने कहा है कि जिस रूप में आज आप लोग मानते हो उस रूप में
नहीं थे अर्थात धार्मिक जगत में कहीं उनका नाम नहीं था.
साईं भक्त: आखिर आपको साईं बाबा में क्या बुराई नजर आती है?
आर्य: क्या आपने साईं बाबा का जीवन चरित्र पढ़ा है?
साईं भक्त: हाँ पढ़ा है.तो?
आर्य: क्या उसमे नहीं लिखा कि साईं बाबा चिलम पीते थे? मांस खाते थे? नमाज़ पढ़ते थे?
साईं भक्त: हाँ लिखा है.तो?
आर्य: जिन देवताओं के साथ आपने साईं बाबा को बिठा रखा है उन देवताओं में कौन देवता
चिलम पीता था और कौन नमाज़ पढता था कौन मांस खाता था? आप लोग साईं के
साथ ईश्वर के मुख्य नाम ॐ को लगाते हो मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम जोड़ते
हो.क्या राम और साईं एक जैसे हो सकते हैं?
साईं भक्त: तो साईं के साथ राम का नाम जोड़ने में क्या बुराई है ?
आर्य: क्या आपके नाम के साथ मुहम्मद शब्द जोड़ा जा सकता है ? या बाद में अहमद
लगाया जा सकता है ?
साईं भक्त: जी नहीं बिलकुल नहीं.
आर्य: इसी प्रकार किसी मुस्लिम फ़कीर के नाम के साथ राम का नाम जोड़ना गलत है.
साईं भक्त: भाई साहब आपकी बात सही है लेकिन......चलिए आप ही बताइए कि क्या साईं बाबा
भगवान् नहीं हैं?
आर्य: भगवान् ? जैसे लक्षण खुद साईं की पुस्तक में लिखे हैं ऐसे लक्षणों वाला तो मनुष्य भी
नहीं कहलाता है और आप उसको भगवान् कहते हैं ? भगवान् तो निराकार है,साईं तो
साकार है.भगवान् तो दयालु है,साईं तो जीभ के स्वाद के लिए मांस खाता है.भगवान् तो
अजन्मा है,साईं तो जन्म लिया है.भगवान् तो अमर है,साईं तो मर गया.और हाँ सबसे
बड़ी बात तो आप सभी साईं भक्त आज तक समझे ही नहीं.
साईं भक्त: वह क्या ?
आर्य: क्या आप लोग नमाज़ पढ़ते हैं ?
साईं भक्त: भाई साहब ये आप क्या कह रहे हैं ? हम लोग नमाज़ क्यों पढेंगे ?
आर्य: क्योंकि आपका साईं बाबा तो नमाज़ पढता था और किसी भी गुरु के चेले उसके ही मत
या सम्प्रदाय के माने जाते हैं.इस नियम से आप सभी साईं भक्तों को भी नमाज़ पढनी
चाहिए.शायद यही उद्देश्य पूरा करने के लिए साईं बाबा को भगवान् के रूप में प्रचारित
किया गया है जिससे कि लोग इसके अनुयायी बनकर धीरे धीरे अपने धर्म को छोड़कर
मुसलमान बन जाएँ.धार्मिक रूप से बरगलाकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की इस
प्रक्रिया को अल तकिया के नाम से जाना जता है.
साईं भक्त: भाई साहब आप हैं कौन जिनको इतनी सब जानकारी है.जो भी हो आपके तर्कों का मेरे
पास कोई जवाब नहीं है.आपकी बातों से मेरी आँखों पर पडा साईं नाम का पर्दा तो हट
चुका है.अब कृपा करके मुझे अँधेरे में मत छोडिये मुझे सही रास्ता भी तो बताइये.
आर्य: मेरे भाई मैं ऋषि दयानंद का एक छोटा सा सिपाही हूँ.जिसने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य
करते हुए समाज से पाखंड को उखाड़ने का संकल्प लिया है.अविद्या को दूर करके विद्या के
प्रचार का कार्य करता हूँ.आर्य समाज के विद्वानों के साथ रहता हूँ.अपने धर्म ग्रन्थ वेदों
को,दर्शनों को,उपनिषदों को पढता हूँ.जिससे सत्य को जानकर असत्य को छोड़ने में
सहायता होती है.
साईं भक्त नहीं अब वेद भक्त: मेरे भाई वेद का मार्ग ही कल्याण का मार्ग है.जिस दिन संसार के
सभी लोग आपकी तरह सत्य को जानकार वेद के मार्ग पर चलने लगेंगे उस दिन संसार
सुख से परिपूर्ण हो जायेगा.और सब सुखी हो जायेंगे.

भाइयों बहनों यह चर्चा मेरे जीवन की एक सत्य घटना पर आधारित है.हम सबको चाहिए कि साईं बाबा जैसे अधर्मी व्यक्ति के अनुयायी न बनकर राम और कृष्णा के अनुयाई बनें.वेदों के मार्ग पर चलें.ईश्वर सबका कल्याण करे.

सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय
सत्यमेव जयते

ओ३म् ।
(नीचे साई का जो चित्र है ये शिरडी साई के मन्दिर से लिया गया है इसी चित्र के पास अल्लाह हु अकबर भी लिखा हुआ है जो भी गए होगे वहां उन्होने देखा होगा)

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चिलचिलाती धूप, उल्टे लटके हुए मुर्गे

एक का सर मोटरसाइकिल के साइलेंसर से छू रहा था, वह पंख फड़फड़ा रहा था!

मनुष्य सच में इस पृथ्वी का सबसे क्रूरतम पशु है!

पशु पक्षियों के साथ दुराचार बन्द हो ।

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*समझदार को इशारा काफी है सरकार इस दुर्घटना की जाँच NIA को भी सौंप सकती है क्योंकि ये कोई आम दुर्घटना नहीं है इसके पीछे सड्यंत्र भी हो सकता है कई दिनों से बंगाल मे वन्देभारत ट्रेन को निशाना बनाया जा रहा है....

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हलाला और मुताह तो जान लिया अब जानें उर्फी निकाह की घिनौनी सच्चाई

उर्फी निकाह क्या है

उर्फी सम्बन्धों को अरबी में "जू अजवाज उर्फी -زواجزواج عرفي " और फारसी में " निकाह उर्फी - نکاح عرفی" कहते हैं , उर्फी शब्द अरबी के "उर्फ़ - عُرف " शब्द से बना है , इसके अर्थ रिवाज(custom, ) और परम्परा( convention ) होते हैं ,यद्यपि यह रिवाज अरबों में मुहम्मद के समय भी मौजूद था , लेकिन मुल्ले इस विषय में खुल कर नहीं बोलते . मिस्र और आसपास के सुन्नी देशों के युवा उर्फी निकाह को बहुत पसंद करते हैं , क्योंकि वहां निकाह के लिए योग्य लड़की मुश्किल से मिलती है , वहां पुरुषों के अनुपात में स्त्रियां बहुत कम है , इसलिए निकाह में शादी में देर लग जाती है , और अगर कोई निकाह के बिना सहवास करता है तो इस्लामी कानून के अनुसार उसे सात साल की सजा हो सकती है , इस समस्या का हल करने के लिए मुल्लों ने कुरान और हदीस सम्मत उर्फी निकाह की तरकीब निकाली है , जिसे " अहले सुन्नत वल जमात " और सूफी भी मानते हैं .

उर्फी निकाह के नियम

वास्तव में इस्लाम निकाह को एक अनुबंध (Agreement) मानता है , जो पुरष और स्त्री के बिच किया जाता है

सुन्नी मुस्लिम निकाह के नियमों की तरह उर्फी निकाह के 3 मुख्य आवश्यक नियम हैं

three requirements of a contract, i.e. offer, acceptance and money) [3]

1 - सुन्नी निकाह की तरह उर्फी में भी ईजाब और कबूल , किया जाता ,

2.उर्फी में भी दो गवाहों की गवाही जरूरी है

3 -उर्फी में महर की राशि (यानि योनि के उपयोग का मुआवजा ) नकद और उसी समय दे दिया जाता है

4-उर्फी निकाह की अवधि पहले ही तय कर दी जाती है , जो एक घंटा ,एक दिन या एक सप्ताह हो सकती है .

5- मुद्दत पूरी हो जाने पर स्त्री स्वतन्त्र हो जाती है , वह फिर से किसी अन्य पुरष से उर्फी निकाह कर सकती है , उसे तलाक देने की जरुरत नहीं होती

6- उर्फी निकाह में स्त्री को अपने किसी संरक्षक से अनुमति लेने की जरुरत नहीं होती

7- एक स्त्री एक ही दिन में थोड़ा अंतर देकर कई पुरषों से उर्फी निकाह कर सकती है
अर्थात एक ही दिन या सप्ताह में कई पुरषों की पत्नी मानी जाती है

फारसी में इस निकाह को " चंद शौहरी - چند شوهری " हिंदी में " बहुपतित्व " अंगरेजी में " polyandry " कहते हैं

आज हमें इस्लाम के इस कटु सत्य को स्वीकार करना होगा कि जैसे एक वेश्या को पैसा देकर उसके जिसम का सौदा किया जाता है , और काम पूरा हो जाने पर उसे रवाना कर देते है ,वैसे ही निकाह में मर्द महर देकर औरत की योनि का मुआवजा चूका देते हैं , यानि उसका जैसा चाहे उपयोग कर सकते हैं , और मन भर जाने पर कोई न कोई बहाना लगा कर तीन बार तलाक बोल कर औरत को भगा देते हैं...

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आर्य शब्द का प्रयोग मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही यदि प्रमाणिक रुप में कहें तो भगवान राम के समय से लेकर के भगवान कृष्ण के काल तक बहुत अधिक रूप से प्रचलित था

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मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री राम अत्यन्त गुणवान् एवं श्रेष्ठ महापुरुष थे।

धर्मज्ञः सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः । यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यः समाधिमान् ।। विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत् प्रियदर्शनः । कालाग्निसदृशः क्रोधे क्षम्या पृथिवीसमः । धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः ।। सत्यवादी महेष्वासो वृद्धसेवी जितेन्द्रियः । स्मितपूर्वाभिभाषी च धर्म सर्वात्मनाश्रितः ।। आहूतस्याभिषेकाय विसृष्टस्य वनाय च । मयालक्षितस्तस्य स्वल्पोऽप्याकारविभ्रमः ।।

महर्षि वाल्मीकि ने कहा है कि राम धर्म के ज्ञाता, सत्य के पालक, सर्वहितकारी, कीर्तियुक्त, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और समाधि लगाने वाले हैं।

वे पराक्रम में विष्णु, प्रिय दर्शन में सोम, क्रोध में काल, क्षमा में पृथ्वी, दान में कुबेर के समान और सत्यभाषण में मानो दूसरे धर्म ही हैं।

श्रीराम सदा सत्य बोलने वाले, महाधनुर्धर, वृद्धों की सेवा करने वाले, जितेन्द्रिय, हँसकर बोलने वाले और सब प्रकार से धर्म का सेवन करने वाले हैं।

महर्षि वसिष्ठ ने कहा है कि राज्याभिषेक के लिए बुलाये जाने पर और इसके प्रतिकूल वनगमन का आदेश दिये जाने पर दोनों स्थितियों में राम के मुखमण्डल पर कोई विकार नहीं दिखायी दिया। "

वस्तुतः राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श सम्राट् एवं आदर्श मनुष्य थे। यहाँ तक कि शत्रुओं ने भी उन्हें आदर्श कहा है।

उन्होंने प्रतिक्षण मर्यादा अर्थात् धर्म एवं नीति के अनुसार आचरण किया। इस कारण उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है।

उनकी असाधारण उपलब्धियों के कारण अधिकांश भारतीय उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

श्री राम की ये उपलब्धियाँ किसी चमत्कार का नहीं अपितु निरन्तर साधना, संयम, बुद्धिमानी, कौशल एवं तपस्या का फल थीं ।

अतः हम भी उनका अनुसरण एवं सुनीति का आचरण करते हुए श्रेष्ठ मनुष्य “आर्य” बनें |

भारत को विश्वगुरु बनाने वाले सम्पूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के इस महान आर्यश्रेष्ठ स्वरूप को हर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई तक पहुंचाएं ।

आओ हम अपने पूर्वजों के गौरवशाली यश को आगे बढ़ाएं और हम और अपने बच्चों को भी वैसे बनाने का प्रयास करें, उनके पदचिन्हों पर चलें और चलने के लिए प्रेरित करें। पढ़ने के लिए धन्यवाद् आपका..✍️

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