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यह तस्वीर पूर्णिया, बिहार के डीएसए ग्राउंड की है। साल था 2013 और 15 वर्षीय ईशान किशन तब लेदर बॉल मैच खेलने आए थे। मुझे आज भी याद है, छोटे से ईशान ने उस मुकाबले में भी बड़ा कारनामा करके दिखाया था। अपने से बड़ी उम्र के तेज गेंदबाजों को मारकर धागा खोल दिया था। छक्के इतनी दूर-दूर जाकर गिरे थे कि आसपास के घरों से लोग मैदान की तरफ भागे चले आए थे। हर कोई तहे दिल से ईशान की बल्लेबाजी की तारीफ कर रहा था लेकिन सबको डर था कि शायद इस बल्लेबाज का टैलेंट बिहार में दम तोड़ देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय बिहार को बीसीसीआई की तरफ से मान्यता नहीं दी गई थी। मैच के बाद हर कोई ईशान से हाथ मिलाने को आतुर था। लोग यकीन नहीं कर पा रहे थे कि इस छोटे से बच्चे ने इतना बड़ा कारनामा किया है।
18 जुलाई 1998 को पटना (बिहार) में जन्मे ईशान छोटी उम्र से क्रिकेट खेलने लगे थे। वर्ष 2014 में मात्र 16 साल की उम्र में फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने कदम रख दिया था। इसी साल उन्होंने झारखंड की तरफ से टी-20 मुकाबले में खेलना शुरू किया। वो टीम इंडिया की अंडर-19 वर्ल्ड कप टीम के कप्तान भी रहे। ईशान को बिहार छोड़ने का अफसोस तो था लेकिन वह जानते थे कि अगर उड़ान ऊंची भरनी है, तो उन्हें आसमान फतह करना होगा। ईशान के पिता प्रणव पांडे को कोच संतोष ने भरोसा दिलाया कि ईशान में वह एक्स फैक्टर मौजूद है, जो उन्हें हिंदुस्तान का नामी-गिरामी बल्लेबाज बना सकता है।
ईशान ने अपना पहला इंटरनेशनल मैच इंग्लैंड के खिलाफ 14 मार्च 2021 को खेला था। इस टी-20 मैच में उन्होंने 32 गेंदों पर 56 रन बना डाले थे। टी-20 इंटरनेशनल के अब तक 21 मैच खेलकर ईशान ने 589 रन बनाए हैं। जल्द ही ईशान को इंटरनेशनल वनडे में भी खेलने का मौका मिला। 18 जुलाई 2021 को श्रीलंका के खिलाफ अपने पहले वनडे मैच में ही ईशान ने 42 गेंदों पर 59 रन बना डाले थे। अब बांग्लादेश के खिलाफ 210 रन की पारी को मिलाकर 10 वनडे मैचों में वह अब तक 477 रन बना चुके हैं। इससे पहले उनका अधिकतम स्कोर 93 रन था, जो उन्होंने अक्टूबर 2022 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बनाया था। ईशान हमेशा से बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन उन्हें नियमित तौर पर अवसर नहीं दिए गए।
लगता है भारत को एक और महेंद्र सिंह धोनी 'माही' मिल गया है। धोनी की तरह ही जन्मभूमि बिहार और कर्मभूमि झारखंड में अपने खेल से इंडियन टीम का सफर तय करने वाले विकेटकीपर बल्लेबाज ईशान किशन ने बांग्लादेश की धरती पर एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है, जो संभवतः दशकों तक तोड़ा नहीं जा सकेगा। ईशान ने बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में मात्र 126 गेंदों पर डबल सेंचुरी लगाई और वेस्टइंडीज के दिग्गज खिलाड़ी क्रिस गेल का 138 गेंदों पर डबल सेंचुरी लगाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिया। यह डबल सेंचुरी ईशान के क्रिकेट करियर में एक नया मोड़ साबित होगी।
ठीक इसी तरह विशाखापत्तनम में पाकिस्तान के खिलाफ 148 रनों की पारी खेलकर महेंद्र सिंह धोनी के करियर में नया मोड़ आ गया था। वह धोनी के वनडे करियर का पांचवां मैच ही था और उम्र 24 वर्ष ही थी। कुछ-कुछ ऐसा ही ईशान किशन ने 24 साल की उम्र में अपने करियर के 10वें वनडे में भी कर दिखाया है। बस फर्क इतना सा है कि धोनी पाकिस्तान के खिलाफ 150 रन लगाने से चूक गए थे और ईशान ने अपने वनडे करियर के दसवें मैच में ही 200 रन का जादुई आंकड़ा छू लिया है। Lekhanbaji को यकीन है कि पूरा हर ख्वाब होगा। ईशान किशन भारतीय क्रिकेट का अगला नवाब होगा।
जरूर पूरा होगा 2023 वर्ल्ड कप जीत का मिशन
अगर टीम इंडिया में खेलेगा शेरदिल ईशान किशन ❤️

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“ अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर , तेरा बेटा तो चोर-डाकू था . इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“
जंगल में लकड़ी बिन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा ...
“ नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं “
बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा .उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था , जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था ...
उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनियां उसे "आजाद " चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है ...!
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था , आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करतें हुए उनके गाँव पहुंचे ...
आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था ...
चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी ...
आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी . अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं ...
लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें .
कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी ...
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही ...
चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की ...
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था ...
आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया . प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया ...
किन्तु झाँसी के नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया ...
मूर्ति बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया ...
उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी ...
जब केंद्र की सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकारों को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ति को स्थापित करने जा रहे हैं तो इन दोनों सरकारों ने अमर बलिदानी शहीद पंडित चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया ...
चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना न की जा सके ...!
जनता और क्रन्तिकारी आजाद की माता की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़े ...
अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन सरकारों ने पुलिस को गोली मार देने का आदेश दे डाला ...
आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया ...
जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया ...
सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ लोग की मौत भी हुईं . (मौत की आधिकारिक पुष्टि कभी नही की गयी)...
इस घटना के कारण चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी ll

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अपने से 40 साल बड़े पुरुष के दिल में बैठी ब्राज़ीलियाई महिला

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Besharam Rang releases, check out pictures that are proof of #shahrukhkhan and #DeepikaPadukone's chemistry:

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लिविंग पैलेस ऑफ महाराजा अरविंद सिंह उदयपुर इसी पैलेस में वर्तमान में भी महाराजा अरविंद सिंह निवास करते हैं

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लिविंग पैलेस ऑफ महाराजा अरविंद सिंह उदयपुर इसी पैलेस में वर्तमान में भी महाराजा अरविंद सिंह निवास करते हैं

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लिविंग पैलेस ऑफ महाराजा अरविंद सिंह उदयपुर इसी पैलेस में वर्तमान में भी महाराजा अरविंद सिंह निवास करते हैं

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