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1400+ दिनों तक बिना ट्रायल के न्यायिक हिरासत के नाम पर न्यायपलिका द्वारा जेल में रखने की "क्रूरता" शायद अंग्रेज़ों के निजाम में गुलामों के साथ भी नहीं हुआ होगा…
इतनी बेसिक ह्यूमन राइट्स तो "गुलामों" को भी अंग्रेजी सिस्टम देती थी, लेकिन वर्तमान भारत का लोकतांत्रिक संवैधानिक निजाम/न्यायपलिका भारतीय मुसलमानों के साथ "क्रूरता की पराकाष्ठा" पेश कर रहा है…
राजस्थान के डूंगरपुर में
स्कूल प्रिंसपल "रमेशचंद्र कटारा" ने स्कूल टाइम में
मोबाइल में पोर्न वीडियो देखता था
उसके बाद लड़कियों को हवस का शिकार बनाता था…
छात्राओं के घर जाने के बाद
अपने परिजनों को इस बारे में बताने पर धमकी देता था,
धीर-धीरे प्रिंसपल रमेशचंद्र कटारा की हिम्मत बढ़ती गई,
छात्राओं को भी स्कूल अवकाश के बाद रोकने लगा और रेप करने लगा…
साथ ही इसकी जानकारी घर पर देने पर
मारकर तालाब में फेंकने की धमकी भी देता था…
इससे बच्चियां डर जाती थीं
और अपने घर जाकर कुछ नही कहती थी…
2018 में केस खुलने पर आरोपी जेल गया…
100 से अधिक छात्राओं का बलात्कार किया था प्रिंसिपल "रमेशचंद्र कटारा" लेकिन केवल 7 छात्राओं ने ही बयान दर्ज कराई जांच के बाद बलात्कार का दोषी पाया गया…
आप चाहें तो ऐसे तस्वीर को पोस्ट कर
आलोचना कर सकते हैं,
लेकिन मैं इंशा अल्लाह ऐसे मंजर के तह तक
जाने की कोशिश करूंगा…
मैं फ़िर्क़ा-वारियत में ना जाकर
इसका सामाजिक विश्लेषण करना चाहूंगा…
कहीं ताजिया को देवी का रूप,
तो कहीं ताजिया को देवता का रूप…
अनेकों रिवाज़/कल्चर हुनूद से सीधे मुसलमानों में प्रवेश किया है और दिन प्रतिदिन करते जा रहा है, और उसी में से एक ये भी है ताजिया को अब मूर्ति का रूप देना…
असल में शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व रहता उसका कल्चर/रिवाज़ प्रजा पर खूब झलकता है, खासकर गरीब/मजदूर तबके में अधिक…
ताजिया को मूर्ति का रूप देना…
इससे साफ पता चलता है कि "हम" पर हुक़ूमत करने वाले मूर्तिपूजक हैं और "हम" मूर्तिपूजक के गुलाम…
आप चाहें जितना चिल्ला लें,
फतवा का ढेर इकट्ठा कर लें
लेकिन इसका असर शायद ही दो चार प्रतिशत लोगों पर हो…
क्योंकि आज की हुकूमत/निजाम मूर्ति पूजा को गलत नहीं मानता चाहे किसी भी रूप में कोई भी करे, मुसलमान करे या कोई और…
इन-फैक्ट, संविधान, कानून आदि से लेकर अभी शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व है उसका तो अधिक से अधिक यही प्रयास है कि मुसलमान को कैसे जल्द से जल्द जल्द मुर्तद बनाकर "घर वापसी" कराया जाए…
मेरा तो यही मानना है कि कल्चर हमेशा हुक्मरान तबका बदलता है, महकूम तो बस फॉलो करता है…
आप चाहें तो ऐसे तस्वीर को पोस्ट कर
आलोचना कर सकते हैं,
लेकिन मैं इंशा अल्लाह ऐसे मंजर के तह तक
जाने की कोशिश करूंगा…
मैं फ़िर्क़ा-वारियत में ना जाकर
इसका सामाजिक विश्लेषण करना चाहूंगा…
कहीं ताजिया को देवी का रूप,
तो कहीं ताजिया को देवता का रूप…
अनेकों रिवाज़/कल्चर हुनूद से सीधे मुसलमानों में प्रवेश किया है और दिन प्रतिदिन करते जा रहा है, और उसी में से एक ये भी है ताजिया को अब मूर्ति का रूप देना…
असल में शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व रहता उसका कल्चर/रिवाज़ प्रजा पर खूब झलकता है, खासकर गरीब/मजदूर तबके में अधिक…
ताजिया को मूर्ति का रूप देना…
इससे साफ पता चलता है कि "हम" पर हुक़ूमत करने वाले मूर्तिपूजक हैं और "हम" मूर्तिपूजक के गुलाम…
आप चाहें जितना चिल्ला लें,
फतवा का ढेर इकट्ठा कर लें
लेकिन इसका असर शायद ही दो चार प्रतिशत लोगों पर हो…
क्योंकि आज की हुकूमत/निजाम मूर्ति पूजा को गलत नहीं मानता चाहे किसी भी रूप में कोई भी करे, मुसलमान करे या कोई और…
इन-फैक्ट, संविधान, कानून आदि से लेकर अभी शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व है उसका तो अधिक से अधिक यही प्रयास है कि मुसलमान को कैसे जल्द से जल्द जल्द मुर्तद बनाकर "घर वापसी" कराया जाए…
मेरा तो यही मानना है कि कल्चर हमेशा हुक्मरान तबका बदलता है, महकूम तो बस फॉलो करता है…
आप चाहें तो ऐसे तस्वीर को पोस्ट कर
आलोचना कर सकते हैं,
लेकिन मैं इंशा अल्लाह ऐसे मंजर के तह तक
जाने की कोशिश करूंगा…
मैं फ़िर्क़ा-वारियत में ना जाकर
इसका सामाजिक विश्लेषण करना चाहूंगा…
कहीं ताजिया को देवी का रूप,
तो कहीं ताजिया को देवता का रूप…
अनेकों रिवाज़/कल्चर हुनूद से सीधे मुसलमानों में प्रवेश किया है और दिन प्रतिदिन करते जा रहा है, और उसी में से एक ये भी है ताजिया को अब मूर्ति का रूप देना…
असल में शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व रहता उसका कल्चर/रिवाज़ प्रजा पर खूब झलकता है, खासकर गरीब/मजदूर तबके में अधिक…
ताजिया को मूर्ति का रूप देना…
इससे साफ पता चलता है कि "हम" पर हुक़ूमत करने वाले मूर्तिपूजक हैं और "हम" मूर्तिपूजक के गुलाम…
आप चाहें जितना चिल्ला लें,
फतवा का ढेर इकट्ठा कर लें
लेकिन इसका असर शायद ही दो चार प्रतिशत लोगों पर हो…
क्योंकि आज की हुकूमत/निजाम मूर्ति पूजा को गलत नहीं मानता चाहे किसी भी रूप में कोई भी करे, मुसलमान करे या कोई और…
इन-फैक्ट, संविधान, कानून आदि से लेकर अभी शासन प्रशासन पर जिस समुदाय का वर्चस्व है उसका तो अधिक से अधिक यही प्रयास है कि मुसलमान को कैसे जल्द से जल्द जल्द मुर्तद बनाकर "घर वापसी" कराया जाए…
मेरा तो यही मानना है कि कल्चर हमेशा हुक्मरान तबका बदलता है, महकूम तो बस फॉलो करता है…
अंबानी साहब आख़िर हमारी तपस्या में क्या कमी रह गई थी😂😂
आपने देखा होगा कि जो लोग भी अनंत अंबानी की शादी में गए थे उन सभी ने अपने Social Media अकाउंट पर तस्वीरें पोस्ट की हैं मगर
मैंने आचार्य प्रमोद कृष्णम और कुमार विश्वास की अंबानी जी की शादी की कोई भी तस्वीर नहीं देखी है इसका मतलब है कि
इन दोनों ही लोगों को निमंत्रण नहीं मिला था।
सच में इन्हें इन्विटेशन न मिलने पर दिल से बुरा लगा 😂😂