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हाल ही की बात है, किसी पहचान वाले के घर जाना हुआ किसी व्यक्तिगत काम के सिलसिले में और वहां जिन सज्जन पुरुष के साथ मैं बैठकर बातें कर रहा था, वहां बैकग्राउंड में यह चीजें चल रही थी.
एक आठ या नौ वर्ष का बालक था, जो अब तक अज्ञात कारणों से कटघरे में खड़ा था. उस बालक की माता जज बनकर उसे कोई फैंसला सुना रही थी और वह किसी बात के लिए दोषी ठहराया जा रहा था.
बालक का चेहरा सारा फसाना बयां कर रहा था और वो मुझसे कुछ दूर तिरछी नजरों से बार बार मुझे देखते हुए बड़ा झेंप सा रहा था.
ऐसा लगा जैसे वो अपनी मां से कह रहा था, भले मुझे अकेले में डांट लो पर किसी और इंसान के सामने मेरी बेइज्जती मत करो.
अब यह देख मैं भी झेंप रहा था क्योंकि मैं खुद नही चाहता था कि उसे खराब लगे और ना मेरा मन उस बच्चे को उस हाल में छोड़कर जाने का कर रहा था.
मै जानना भी चाह रहा था कि आख़िर उसे इतना कोसा जा क्यों रहा है.धीरे से समझ आया कि उस बच्चे ने कोई पेपर बहुत खराब कर दिया है.मुझे लगा, शायद फेल हो गया है पर फिर धीरे से पता चला कि उसके दो नंबर कट गए हैं.
मै हैरान था कि हम बच्चों को आखिर किस रेस में दौड़ा रहे हैं? कौन परफेक्ट है?कंप्यूटर? वो तो बाज़ार में बिक रहा है ना? खरीद लो ना, बच्चों को क्यों कम्प्यूटर बनाना है परफेक्शन के साथ साथ वो कहीं ना कहीं इमोशनलेस भी हो रहा है. पर क्या इस बात का तुम्हें फरक पड़ रहा है? फर्क छोड़िए, कुछ लोगों को तो यह भी नही पता है कि इससे बच्चों पर आखिर असर क्या हो रहा है.
हो सकता है, मैं ओवर जज कर रहा हूं या हो सकता है मैं आज के समय के अप्रोच से अनजान हूं पर मैं इंसान के सीने में धड़कने वाले दिल और उसके इमोशन से भलीभांति परिचित हूं और मेरी समझ से जो हो रहा था वो बहुत गलत था.
लोग कब समझेंगे कि फेलियर होना, एवरेज होना, कम नंबर आना बहुत नॉर्मल है.बात तो तब होती जब उस बच्चे की पीठ थपथपाई जाती, बात तब होती जब उसके एफर्ट को छोटे से सेलिब्रेशन के रूप में मनाया जाता.
पता नही ये मैं किसके लिए लिखता हूं क्योंकि जो समझे हुए हैं उन्हे समझाकर कुछ मिलना नही है और जिन्हे कुछ समझाया नही जा सकता, वो इसे पढ़कर या किसी और समझने वाली चीज को देखकर भी नही नही समझेंगे.
फिलहाल, बात सिर्फ इतनी सी है कि इस घटना में समझाइश की उस बच्चे को नहीं उसकी माता को जरूरत थी, बशर्ते वो समझना चाहती या समझ पाती.