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मंदिर की दानपेटी में कंडोम रखा, घर की दीवार पर सिर मार-मार मरा नवाज : रहीम-तौफीक गुनाह कबूलने भगवान की शरण में पहुँचे

कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा को लेकर स्थानीयों के मन में असीम आस्था है, लोग उन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं

पिछले दिनों कोरगज्जा के मंदिर में कई अभद्र घटनाएँ हुईं, मंदिर की दानपेटी में कंडोम तक डाल दिया गया

ऐसे घृणित वाकये के बावजूद पुलिस आरोपितों को ढूँढने में असमर्थ थी

निराश श्रद्धालु लगातार कोरगज्जा भगवान से ऐसे विधर्मियों को सजा देने के लिए प्रार्थना कर रहे थे, कुछ दिन पहले भगवान ने अपने श्रद्धालुओं की सुनी और ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि विधर्मी स्वयं मंदिर में आकर माफी माँगने लगे

ये बिलकुल वास्तविक घटना है, इसी साल जनवरी में मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था लेकिन तीन दिन पहले अचानक दूसरे समुदाय के दो लड़के मंदिर में आए और पुजारी के सामने माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगे

पहले पुजारी को लगा कि वह मजाक कर रहे हैं लेकिन नहीं, वह गंभीर थे

उन दोनों ने पुजारी को बताया कि अपने साथी नवाज के साथ मिल कर उन्होंने ही कुछ दिन पहले मंदिर की दानपेटी में कंडोम डाला था

नवाज माफी माँगने के लिए जिंदा नहीं था

दानपेटी में कंडोम डालने के बाद उसे एक दिन खून की उल्टियाँ हुईं और फिर पेचिश से उसके मल से खून निकला

अंत में वह अपने घर की दीवारों पर सिर मारते हुए मर गया

मरते समय उसने उन्हें बताया कि कोरगज्जा उन सब पर नाराज हैं

सनातन कोई कपोल कल्पना नहीं है, विधर्मियो को उनके किये की सजा स्वयं मिल गयी

भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं।

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#श्रीकृष्णकी_अद्भुत_लीला_जिसमे_मानव_मात्र_को_सिखाया_मृत्यु_का_श्रेष्ठतम_आदर्श!
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वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।

भगवान श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं । उनकी प्रत्येक लीला मनुष्य को कुछ-न-कुछ अवश्य सिखाती है । भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अवतारलीला का संवरण कर गोलोक जाते हुए भी मनुष्य को यह सिखाया कि मृत्यु का वरण (स्वागत) किस तरह करना चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण के लीला-संवरण का वह अभूतपूर्व दृश्य एक ऐसे महान और विलक्षण आदर्श को संसार के सामने प्रस्तुत करता है, जो न अब तक कभी किसी ने देखा और न सुना । श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध के ३०वें अध्याय में इसका वर्णन मिलता है।

असल में भगवान का प्रकट होना और जाना नाटक के नट की तरह है । जो गुरु-पुत्र को यमपुरी से सशरीर लौटा सकते थे, देवकी के मरे हुए बेटों को ला सकते थे, स्वयं परीक्षित को गर्भ में ब्रह्मास्त्र से बचा सकते थे, वे क्या स्वयं जीवित नहीं रह सकते थे ? अवश्य रह सकते थे; परंतु उन्होंने यह विचार किया कि अंत में मानव जाति के लिए एक आदर्श स्थापित करना चाहिए।

भगवान ने सोचा कि अगर मैंने शरीर रख लिया तो दुनिया यही कहेगी कि ज्ञानी अमर होता है, मरता नहीं; इसलिए मर्त्यलोक में मानव शरीर की गति प्रदर्शित करने के लिए भगवान ने अपना शरीर पृथ्वीलोक में नहीं रखा।

अपने अग्रज बलराम जी के परम-पद में लीन हो जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप धारण कर सारी दिशाओं में छिटकती हुई अपनी दिव्य ज्योति को समेट कर निपट अकेले नदी तट पर एक पीपल की जड़ पर सिर टेक कर लेट गए । उस समय उनके नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण शरीर से सुवर्ण की-सी ज्योति निकल रही थी । वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न था । वे धोती और चादर—दो रेशमी वस्त्र धारण किए हुए थे । उनके मुख पर सुंदर मुस्कान छाई हुई थी।

कमलदल के समान सुंदर नेत्र थे और कानों में मकराकृति कुण्डल झिलमिला रहे थे । शरीर पर यथास्थान मुकुट, यज्ञोपवीत, हार, कुण्डल, कड़े, बाजूबंद, नूपूर, करधनी, वनमाला, कौस्तुभमणि आदि सुशोभित हो रहे थे । शंख, चक्र, गदा और पद्म आदि आयुध मूर्तिमान होकर सेवा में उपस्थित थे । उस समय भगवान अपने बायें चरणारविंद को दाहिनी जंघा पर रखे हुए थे । उनके चरणारविन्द का तलवा लाल-लाल चमक रहा था।

‘जरा’ व्याध ने दूर से छाती पर मुड़े पैर को देखा और उसे मृग समझ कर तीर चला दिया, जो आकर भगवान के तलवे में लगा और रक्त की धारा फूट पड़ी । व्याध जब पास आया तो उसने भगवान का चतुर्भुज रूप देखा तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ।

इस दुर्घटना के लिए आंसू बहाते हुए चीत्कार करता हुआ वह भगवान के चरणों में दण्डवत् गिर पड़ा । वह अपने-आप को शाप देते हुए निकृष्टतम महापापी घोषित करने लगा।

उसने कहा—‘मधुसूदन ! मुझसे अनजान में यह अपराध हो गया, मैं महापापी हूँ । आप परम यशस्वी और निष्पाप हैं । कृपापूर्वक मुझे क्षमा कीजिए । हे विष्णो ! जिन आपके स्मरण मात्र से मनुष्यों का अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है, हाय ! उन्हीं आपका मैंने अनिष्ट कर दिया ।’
अमर्षरहित भगवान ने उठ कर तुरंत व्याध को छाती से लगा लिया और उसे ऐसे सांन्त्वना देने लगे, जैसे उसने कोई अपराध ही न किया हो ।

किसने सिखाया श्याम, तुम्हें मीठा बोलना।
मीठी तुम्हारी वाणी, चितवन का चोरना।।
जामा तेरो लाख का है, पटका करोरना ।
शीश मुकुट लकुट हाथ, लट का मरोरना।।

भगवान ने कहा—‘अरे ! उठ, उठ, तू डर मत ! यह तो तूने मेरे मन का काम किया है—मेरी इच्छा की पूर्ति की है । मैंने

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🌺कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।
🌹#जय_बम_बम_भोले....🚩
#मानस से:- कलिजुग केवल हरि गुन गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ।। कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना । एक आधार राम गुन गाना ।। सब भरोस तजि जो भज रामहि । प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि ।। सोइ भव तर कछु संसय नाहीं । नाम प्रताप प्रगय कलि माहीं ।।
#भवार्थ :- ‘कलियुग में तो केवल श्री हरि की गुण गाथाओं का गान करने से ही मनुष्य भवसागर की थाह पा जाते हैं । कलियुग में न तो योग और यज्ञ है और न ज्ञान ही है । श्री राम जी का गुणगान ही एकमात्र आधार है । अतएव सारे भरोसे त्यागकर जो श्रीरामजी को भजता है और प्रेमसहित उनके गुणसमूहों को गाता है, वही भवसागर से तर जाता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं । नाम का प्रताप कलियुग में प्रत्यक्ष है ।’
#जय_जय_श्रीराम!!⛔
🌺🌹#शुभ_प्रभात??
🔥#आपका_दिन_सोमवार_मंगलमय_हो?

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भगवान राम के लिये केवट कि अभिव्यक्ति सबसे सुंदर थी।
नाथ आज मैं काह न पावा।
राम इस तरह से व्याप्त है।
सगुण, निर्गुण, द्वैत , अद्वैत सभी में राम है।
जब भी ज्ञानियों के लिये यह दुष्कर हुआ कि वह कैसे ईश्वर को परिभाषित करें, तो उन्होंने राम कह दिया।
भक्त जब भी अपने भाव में विव्हल हुये तो राम कह दिया।
राम इतने सरल , सुगम है कि सब ने उन्हें अपना लिया।
किसी ने कहा मेरे राम,
किसी ने कहा हे राम,
किसी ने कहा सबके राम,
किसी ने कहा अपने अपने राम,
किसी ने कहा राम ही ब्रह्म है।
जब धर्म को लेकर धर्म का संकट खड़ा हुआ।
जब जीवन मूल्यों के प्रति वाद विवाद हुआ।
जब भी शास्त्रों में मतैक्य पैदा हुये।
तब 'राम ' ही मानदंड बनकर समाधान दिये।
योगेश्वर भगवान कृष्ण युद्धभूमि धर्मज्ञ लोगों के बीच कहते है, क्या मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम ने ऐसा नहीं किया था।
युधिष्ठिर, अपने भाईयों से कहते है। भगवान राम भी तो वन को गये थे।
आम्रपाली, भगवान बुद्ध से कहती है कि मर्यादापुरुषोत्तम राम ने अहिल्या का उद्धार नहीं किया था।
वह कौन है, इस पवित्र भूमि पर पैदा हुआ महात्मा, साधु, ऋषि, कवि जिन्होंने राम कि महिमा का वर्णन न किया हो।
डॉ राममनोहर लोहिया कहते थे कि राम के आदर्श के बिना भारत जीवित नहीं रह सकता है।
अटल विहारी वाजपेयी संसद में अपने भाषण के अंत मे कहते है कि भगवान राम ने कहा था मैं मृत्यु को स्वीकार कर लूँगा, लेकिन अपकृति स्वीकार नहीं कर सकता।
हम अपने दोषों, कमियों के साथ उस छत्रछाया में सुरक्षित रहते है। जो मर्यादापुरुषोत्तम द्वारा बनी है।
एक चाय कि दुकान पर बैठा झाड़ू लगाने वाला व्यक्ति कह रहा था।
जब कोई अन्य धर्म का व्यक्ति कहता है।तुम बोलते तो राम राम हो लेकिन राम जैसी मर्यादा भी है।
मैं भावुक हो जाता हूँ कि हमारे राम ऐसे ही कि उनकी प्रंशसा अन्य धर्म के लोग भी करते है। क्या ज्ञानी, क्या अनपढ़ राम सबके एक जैसे है।
उच्चतम न्यायालय राममंदिर कि सुनवाई के आरंभ में कहता है कि आप सभी पक्ष जब अपने तर्क रखें तो ध्यान रखें कि भगवान राम कि मर्यादा पर आँच न आये। यह भारत के लोगों कि भावनाओं पर आघात होगा।
हम अपने श्रेष्ठतम प्रयास को भी कहते है।
यह मेरा गिलहरी जैसा प्रयास है। अर्थात यह राम के चरणों में समर्पित है।।

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मंत्रमुग्ध करने वाली अंजयनाद्री पहाड़ी, हनुमान जी का जन्म स्थल।
जय श्री राम 🚩🚩

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