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कभी जिंदगी ने मेरी न मनी, कभी मैने जिंदगी की न मनी । दौर ये आया कि संघर्ष ही साथ लाया।।
जिंदगी कहती रही मेरे साथ चलो, मैने हंस कर टला और कहा। मेरे रास्ते बदल गये हैं, अब मंजिल वो नहीं रही ।।
जिंदगी ने कभी मेरे साथ संघर्ष किया, कभी मैने जिंदगी के साथ। वक़्त की आंधी ऐसी आयी, बदलाव का दौर साथ लायी।।
बदले हुए अंजान रास्ते हैं, इन रास्तों पर अकेले चलना है। लड़खड़ाये कदम जो खुद ही गिरना, और खुद ही संभलना है।।
वैदिक देवों की मूर्तियों का खुदाई में जमीन के अंदर से निकलना धार्मिक षडयंत्र की ओर संकेत करता है । ये एक विचारणीय प्रश्न है कि इसके पीछे किसकी साजिश रही थी और क्यों ?
ज्ञातव्य है वैदिक काल में हरि हर परशुराम का जयघोष हर दिशा में गूंजता था, बाल्मीकि रामायण में वर्णित है..
अयोध्या नरेश रामचन्द्र जी ने श्री हरि परशुराम जी का पूजन करके ये बात कही है :-
प्रभु भार्गव राम(परशुराम) इस पृथ्वी पर साक्षात विष्णु हैं
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यानाम् च निरादरः ।
त्रीणि तत्र प्रविशन्ति,दुर्भिक्षं,मरणं भयम् ॥
—( पद्मपुराणम् / खण्ड ६)
जहाँ पर अयोग्यों को पूजा जाता है और विद्वानों का निरादर किया जाता है ,वहां तीन चीजें प्रवेश कर जाती है-
(1) भुखमरी (2) मृत्यु (3) भय
#हाथरस_घटना