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रोते हुए बाल संगीतकार की छवि को आधुनिक इतिहास की सबसे भावनात्मक तस्वीरों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
यह तस्वीर एक 12 वर्षीय ब्राजीलियाई लड़के (डिएगो फ्रैज़ो तुर्काटो) की ली गई थी, जो अपने शिक्षक के अंतिम संस्कार में वायलिन बजा रहा था, जिसने उसे गरीबी और अपराध के वातावरण से बचाया था जिसमें वह रहता था।
इस तस्वीर में मानवता दुनिया की सबसे मजबूत आवाज में बोलती है: "करुणा के बीज बोने के लिए एक बच्चे में प्यार और दया पैदा करें। और तभी आप एक महान सभ्यता, एक महान राष्ट्र का निर्माण करेंगे"। (फोटोग्राफर: मार्कोस ट्रिस्टाओ)
©Lakshmi Pratap Singh
ईश्वर मर चुका है हमने उसकी हत्या कर दी। हम हत्यारों के हत्यारे कैसे खुद को दिलासा देंगे। इस समय में जो सबसे पवित्र और सबसे ताकतवर था, उसे हमने अपने चाकू से गोद कर मार डाला। क्या इस कृत्य की महानता हमसे परे नहीं? सिर्फ इस लायक दिखने के लिए ही सही क्यों ना हम खुद ईश्वर बन जाए।
ये एक एक मशहूर क्वोट है फ्रेडरिक नित्शे का, जिसे आपने भी कहीं ना कहीं पढ़ा होगा, हो सकता है आप इससे प्रभावित भी हुए होंगे। लेकिन कम बार ही होता है कि ऐसी किसी हैरतअंगेज बात पर ठहर हम सोचें।
हम दफ्तर जाने वाले लोग हैं, ईएमआई भरने वाले लोग हैं, मेहनत मजदूरी करने वाले, सोशल मीडिया पर जिंदगी भुना देने वाले लोग हैं।
कोई हमें बता रहा है कि हम ईश्वर का कत्ल करके ख़ुद ईश्वर बनने की कोशिश कर रहे हैं।
अगर फ्रेडरिक नीत्से ट्विटर, फेसबुक या यूट्यूब पर होते तो आज कम्युनिटी गाइडलाइंस का उल्लंघन करने के एवज में उनका अकाउंट जरूर सस्पेंड हो जाता, कोई ना कोई लीगल सम्मन आजाते कि नीत्से भैया ने शांति व्यवस्था में दखल डाल दिया है, मासूम ब्रेनवॉश्ड लोगों की भावनाएं तार तार कर दी हैं।
उन्हें अगर अमेरिका में तूल मिलता तो कैंसिल कर दिए जाते,
भारत में तूल मिलता तो कूट दिए जाते,
पाकिस्तान में तूल मिलता तो ईशनिंदा में मृत्यु की सजा दे दी जाती,
और मुमकिन है फ्रांस, इटली और इजरायल में भी कुछ यही होता।