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गुजरात के अंतिम राजपूत युग के सम्राट परमभट्टारक त्रैलोक्यमल चालुक्यवंशम महाराजाधिराज श्री कर्णदेव वाघेला पाटन.. विक्रम संवत 1353 - 1360..
कल पाटण नरेश कर्णदेवजी वाघेला पर कुछ चर्चा हुई थी। इतिहास और प्रेम काव्य रचना के मिश्रण से एक महान प्रतापी सम्राट का कैसे चरित्र पतन किया गया इसका साक्ष्य ऐतिहासिक तथ्यों, पुस्तकों और शिलालेखों के माध्यम से स्पष्ट हुआ है शोध श्री दिग्विजय सिंह प्रवीण सिंह वाघेला जी का है लेखन सहयोग श्री सत्यपाल सिंह वाघेला हैं मैंने गुजराती से अनुवाद किया है -
गुर्जर भूमि (अन्हिलवाड पाटण) महाराजाधिराज" परमभट्टारक "कर्णदेव वाघेला (जिन्हें करण घेला के नाम से जाना गया।)
पाटण के महाराजा परम भट्टारक, परमेश्वर, त्रैलोक्यमल्ल, चालुक्य वंशज, श्री कर्णसिंह वाघेला। पाटण पर उनका शासन विक्रम संवत १३५३ से १३६० तक था। वह गुजरात के महान राजपूत महाराजा थे, हम उनके इतिहास पर लिखे गए उपन्यासों और उन उपन्यासों में क्या लिखा है? उस पर चर्चा करेंगे और उनके विवादों का खंडन भी करेंगे।