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भारत का अनसुलझा इतिहास: एच. ब्रूनहाफ़र के आधार पर इतिहासकार जी. ह्यू सिंग ने बताया है कि ऋग्वेद में उल्लिखित राजा कनित पृथुश्रवस वास्तव में राजा कनिष्क ही हैं।
स्टेन कोनो के आधार पर कंदहार से गंधार बना और गंधारी ऋग्वेद में है। यह कंदहार शक - कुषाण के समय का नाम है। इसलिए ऋग्वेद की रचना मौर्य काल के बाद हुई है। कनिष्क भारतवर्ष के एक प्रतापी राजा था। इनके काल मे हिन्दू सनातन धर्म के साथ साथ जैन और बौद्ध धर्म भी बहुत फुले फले।
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अद्भुत समाज सुधारक, महान संत कबीरदास का जीवन मानवीय मूल्यों के विकास और 'रूढ़ि-मुक्त समाज' की स्थापना की प्रेरणा प्रदान करता है।
लोक मर्म को स्पर्श करती एवं सामाजिक समरसता की राह दिखाती उनकी 'सबद' व 'साखियां' सदैव प्रासंगिक रहेंगी।
ऐसे पूज्य मनीषी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि!
काशी के प्रकांड विद्वान एवं श्री राम जन्मभूमि प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य पुरोहित, वेदमूर्ति, आचार्य श्री लक्ष्मीकांत दीक्षित जी का गोलोकगमन अध्यात्म व साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है।
संस्कृत भाषा व भारतीय संस्कृति की सेवा हेतु वे सदैव स्मरणीय रहेंगे।
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान एवं उनके शिष्यों और अनुयायियों को यह दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
ॐ शांति!