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कभी कभी दुनिया से छिप कर, अपने से बातें करने का मन करता है।
कुछ लम्हें पुराने, चुराने का मन करता है।
है टीस पुरानी, जख्म हैं गहरा।
हसीन वादियों में,खो जाने का मन करता है।
वो बचपन का अंगना , दोस्तों की टोली।।
वो दीवानगी और फककडपन मैं आज भी ना भुला ।।।
भाई बहनों की लड़ाई,गली में खेलते थे कबड्डी और भागमभगाई।
चांद की मादकता, गर्मी की रातें।
वो बारिश की बौछार,जगा देती थी मन का मोर।
पता ही नहीं चलता था,कब हो गई भोर।।
सूरज की लाली,अम्बूआ पर बैठी कोयल मदवाली।।
ले चल मन ऐसे वीराने में।।।
शांत हो मार्ग,ना हो कोई भी शोर।
दौनौ तरफ हो चीड़ के गगनचुंबी वृक्ष, पक्षियों का हो कलरव।।
ना जात-पात , ना भेदभाव चारो तरफ हो अमन का चमन,,,♥️
कैसे कहूं मन की ये पीर, ऐसे क्षण के लिए हो रहा है ये मन बावरा ______🥀🥀