Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
🙏🙏👏
जब सोमनाथ मंदिर बना डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू के बीच तकरार की वजह, जानें - पूरा किस्सा -
कभी अपनी संपदा और ऐश्वर्य के लिए ख़्यात सोमनाथ मंदिर में जब 1947 में सरदार पटेल पहुंचे तो इसकी हालत देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई. इसके बाद उन्होंने सोमनाथ के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया और अपने सहयोगी केएम मुंशी को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी. 1951 में जब मंदिर का पुननिर्माण पूरा हुआ तो खुद सरदार वल्लभभाई पटेल इसके उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए मौजूद नहीं थे. राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को मंदिर के उद्घाटन करने का न्योता दिया गया और उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू को यह पसंद नहीं आया.
जवाहरलाल नेहरू ने ख़ुद को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण से पूरी तरह अलग रखा था और सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र तक लिखा था. उन्होंने कहा था कि सोमनाथ मंदिर परियोजना के लिए सरकारी फ़ंड का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
जय मां गंगे ♨️❤️👏
गंगाजल_खराब_क्यों_नहीं_होता?
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250डालर में क्यों मिलता है।
सर्दी के मौसम में कई बार छोटी बेटी को खांसी की शिकायत हुई और कई प्रकार के सिरप से ठीक ही नहीं हुई। इसी
दौरान एक दिन घर ज्येष्ठ जी का आना हुआ और वे गोमुख से गंगाजल की एक कैन भरकर लाए। थोड़े पोंगे पंडित टाइप हैं, तो
बोले जब डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तो तब गंगाजल पिलाना चाहिए।
मैंने बेटी से कहलवाया, ताउ जी को कहो कि गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है तो
बोले, नहीं कई रोगों का भी इलाज है। बेटी को पता नहीं क्या पढाया वह जिद करने लगी कि गंगा जल ही पिउंगी, सो दिन में
उसे तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिला दिया और तीन दिन में उसकी खांसी ठीक हो गई। यह हमारा अनुभव है, हम इसे
गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल
का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।
इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड
जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे,
क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी
अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई_हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का
बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।
दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में
बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल
बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर
चंद्रशेखरनौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि
गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई_कोलाई बैक्टीरिया
को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय
में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से
आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी,
कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती
मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम
अभी नहीं समझ पाए हैं।
डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल
लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई
बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी
में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में
एक एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी
तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह
पाया।
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने
वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया
की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने
के बाद फिर छिप जाते हैं।
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि
गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता
कहाँ से आती है?
भगत सिंह ने कहा था मैं फिर आऊंगा,
मां ने पूछा पहचानूंगी कैसे?
तो #भगत_सिंह बोले जो देश के लिए लड़ते हुए दिखे समझ लेना मैं ही हूँ!
भगत सिंह ने कहा था मैं फिर आऊंगा,
मां ने पूछा पहचानूंगी कैसे?
तो #भगत_सिंह बोले जो देश के लिए लड़ते हुए दिखे समझ लेना मैं ही हूँ!
भगत सिंह ने कहा था मैं फिर आऊंगा,
मां ने पूछा पहचानूंगी कैसे?
तो #भगत_सिंह बोले जो देश के लिए लड़ते हुए दिखे समझ लेना मैं ही हूँ!
भगत सिंह ने कहा था मैं फिर आऊंगा,
मां ने पूछा पहचानूंगी कैसे?
तो #भगत_सिंह बोले जो देश के लिए लड़ते हुए दिखे समझ लेना मैं ही हूँ!
❤️🌺👏
#मुगलसराय_स्टेशन, 🔥♨️💯
वर्तमान- पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन.
पिलर नंबर- 1276
11 फरवरी को इसी दिन 1968 को प्रातः 3.30 पर एक रेलवेमैन ने सहायक स्टेशन मास्टर को सबसे पहले एक शव की सूचना दी ,
3.35 पर पुलिस को सूचना दी गई 3.45 पर 3 सिपाही शव की निगरानी को पहुंचे ,
4 बजे रेलवे पुलिस के दरोगा साहब वहां पहुंचे ।
6 बजे डॉक्टर साहब आये व मृत्यु की पुष्टि की ,
7.30 को शव का पहला फ़ोटो खींचा गया ।
शव जमीन पर सीधा पड़ा था ,
6 घंटो के बाद शव को स्टेशन लाया गया ,
उनकी ही धोती से शव को ढक दिया गया ।
स्थानीय रेलवे कर्मचारी ने सबसे पहले पुष्टि की -के यह शव #पंडित_दीनदयाल_उपाध्याय जी का हैं ।
उनकी मुट्ठी में 5₹ का एक नोट था #नानाजी_देशमुख अंकित कलाई घड़ी थी व जेब में 26₹ व रेल का टिकट था !
यतः पिंडे ततः ब्रह्माण्डे
हमारीं सम्पूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव होना चाहिए ।
आज हम समस्त कार्यकर्ताओ को याद रखना चाहिए ,
इस #एकात्म_मानववाद के पुरोधा का बलिदान ,
जिनका एकमात्र चिंतन राष्ट्रवाद रहा ।
पंडितजी की स्मृति को शत शत वंदन ... 💐💐
यह हत्या आज भी रहस्य हैं।
संघ के स्वयंसेवक से लेकर जनसंघ के अध्यक्ष तक
#पं_दीनदयाल_उपाध्याय_जी का पूरा जीवन देश के लिए समर्पित रहा पुण्यतिथि पर शत-शत नमन🙏💐
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳