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जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ पोस्ट ३३९, बालकाण्ड दोहा ६९/१-४, नारदजी हिमाचल को बता रहे हैं।
सुरसरि जल कृत बारुनि जाना।
कबहुॅं न संत करहिं तेहि पाना।।
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें।
ईस अनीसहिं अंतरु तैसे।।
संभु सहज समरथ भगवाना।
एहि बिबाहॅं सब बिधि कल्याना।।
दुराराध्य पै अहहिं महेसु।
आशुतोष पुनि किएं कलेसू।।
भावार्थ:- नारदजी ने हिमाचल से कहा कि गंगा जल से बनायी हुई मदिरा को जानकर संत लोग कभी उसका पान नहीं करते। पर वहीं गंगाजल मे मिल जाने पर जैसे पवित्र हो जाती है, ईश्वर और जीव में भी वैसा ही भेद है। शिवजी सहज ही समर्थ हैं, क्यों कि वे भगवान है।इसलिये इस विवाह में सब प्रकार से कल्याण हैं। परन्तु महादेव जी की बड़ी कठिन है, फिर भी तप/ क्लेश करने से बहुत जल्द सन्तुष्ट हो जाते हैं।
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