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महादेव के चरणों में है स्वर्ग का वास,
हर कष्ट मिटे, मिले जीवन में प्रकाश।
जटाओं से बहती गंगा की धारा,
करती है पावन हर एक अभिलाषा।

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जोगा सिंह होंगे डेरा बाबा नानक के नए DSP

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खाटू नगरी के राजा श्याम,
सजा है दरबार तुम्हारा महान।
जन्मदिन पर लाया प्यार का तोहफा,
करते हैं सब भक्त तुम्हें प्रणाम।
श्याम के जन्म का पावन दिन आया,
हर मन में आशा का दीप जलाया।
खुशियों की बरसात हो निरंतर,
सारा जग हो भक्ति में रँग आया।
खाटू वाले श्याम का आज जन्मोत्सव है,
हर दिल में बस भक्ति की लगन है।
चलो मिलकर करें जय-जयकार,
प्यारे श्याम की महिमा अपरंपार।
श्याम बाबा का जन्मदिन है आया,
संग प्रेम का सागर लहराया।
खुशियों से भर दो हर एक मन,
खाटू नगरी में आनंद छाया।

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तुलसी विवाह: धार्मिक महत्त्व और विशेष पूजा विधि
तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान है, जो हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे का विवाह भगवान विष्णु के अवतार, शालिग्राम के साथ किया जाता है। इस पर्व को हिन्दू धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है, क्योंकि यह शुभ अवसर देवउठनी एकादशी के साथ जुड़ा होता है, जब भगवान विष्णु चार महीनों की योग निद्रा के बाद जागते हैं। यही कारण है कि तुलसी विवाह को शुभ कार्यों की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्त्व
तुलसी विवाह का उल्लेख हिन्दू धर्मशास्त्रों में कई कथाओं के माध्यम से किया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, तुलसी को माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है और भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का विशेष स्थान है। कहा जाता है कि तुलसी जी, असुर राजा जालंधर की पत्नी वृंदा का अवतार हैं, जो अपने पति के भक्ति और तप की शक्ति से अजेय बनी रही थीं। भगवान विष्णु ने वृंदा के तप को भंग करने के लिए एक विशेष लीला रची, और अंततः जालंधर का वध शिव जी द्वारा हुआ। इसके पश्चात् वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप दिया और तुलसी का पौधा बन गईं। तुलसी विवाह का आयोजन इसी कथा को आधार मानकर किया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह करके उन्हें सम्मान प्रदान किया।
तुलसी विवाह की पूजा विधि
तुलसी विवाह के दिन घरों और मंदिरों को सजाया जाता है। तुलसी के पौधे को मंगला स्नान करवाकर सजाया जाता है और उसके पास भगवान शालिग्राम की मूर्ति या चित्र को स्थापित किया जाता है। विवाह मंडप तैयार किया जाता है, जिसमें आम के पत्ते, केले के खंभे और फूलों से सजावट की जाती है।
तुलसी को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है, और उसे वस्त्र, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी आदि से श्रृंगार किया जाता है। वहीं, शालिग्राम को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। फिर पंडित जी विधिपूर्वक विवाह संस्कार संपन्न कराते हैं, जिसमें मंत्रोच्चारण, फेरे और मंगल गीत शामिल होते हैं। यह विवाह पारंपरिक तरीके से संपन्न होता है, जैसे किसी मानव विवाह में होता है।
तुलसी विवाह का महत्त्व और लाभ
तुलसी विवाह को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह कराने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से जो व्यक्ति आर्थिक संकट, वैवाहिक समस्याओं या संतान सुख से वंचित हैं, उनके लिए यह पर्व अत्यंत फलदायी माना जाता है।
तुलसी विवाह पारिवारिक और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है, क्योंकि यह आयोजन समाज को एकजुट करता है। तुलसी जी को घर में स्थापित करने और नियमित रूप से उनकी पूजा करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी यह पौधा अत्यंत उपयोगी है। तुलसी का औषधीय महत्त्व भी कम नहीं है, और इस पर्व के माध्यम से तुलसी के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह भारतीय संस्कृति की एक अनमोल परंपरा है, जो भक्ति, श्रद्धा और वैदिक विधियों का सुंदर समन्वय है। यह पर्व हमें भगवान की भक्ति और उनके प्रति प्रेम को प्रकट करने का अवसर देता है। इसी के साथ यह जीवन में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम भी है।

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"जहाँ संकट में नाम तुम्हारा, हनुमान जी, हृदय को बल देता है,
रामदूत की कृपा से हर भय, हर विपदा टल जाता है।
जो प्रेम से जपे नाम तुम्हारा, संकट से मुक्त हो जाए,
तेरी भक्ति में डूबे मन को, हर क्षण शांति मिल जाए।"

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