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कर्णम मल्लेश्वरी भारत की पहली महिला वेटलिफ्टर हैं, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतकर इतिहास रचा। उनका जन्म 1 जून 1975 को आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। मल्लेश्वरी ने कठिन मेहनत और संघर्ष के बल पर खुद को वेटलिफ्टिंग में स्थापित किया और कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
2000 के सिडनी ओलंपिक में मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता, जो किसी भारतीय महिला का पहला ओलंपिक पदक था। उन्होंने 69 किग्रा वर्ग में 110 किग्रा स्नैच और 130 किग्रा क्लीन एंड जर्क का वजन उठाकर यह उपलब्धि हासिल की। उनकी इस सफलता ने न केवल भारतीय खेल जगत में एक नई क्रांति लाई, बल्कि देश की युवा महिलाओं को भी खेलों में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।
मल्लेश्वरी को उनकी उपलब्धियों के लिए "राजीव गांधी खेल रत्न" और "पद्म श्री" जैसे सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। उनकी कहानी संघर्ष, समर्पण, और भारतीय महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो यह दिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
सर्दियों में बम्पर फ्लावरिंग के लिए गेंदा, कैलेंडुला, पॉपी, गुलदाउदी , पेटुनिया और डायंथस के बीजों को लगाने का बेस्ट टाइम चल रहा है। बीजों को लगाने के लिए मिट्टी तैयार करें, जिसमें 50% मिट्टी, 25% वर्मीकम्पोस्ट / गोबर की खाद और 25% कोकोपीट / रेत मिलाएं। इस मिश्रण को गमले या सीडलिंग ट्रे में भरें और फूलों के बीजों को मिट्टी के ऊपर बिखेर दें। फिर पोटिंग मिक्स की एक पतली सी लेयर से बीजों को कवर करें और पानी डालें। गमले / सीडलिंग ट्रे को प्लास्टिक की पन्नी से ढ़क कर सेमी-शेड वाली जगह पर रखें, जहां सुबह की 2-3 घंटे की हल्की धूप आती हो। 1 हफ्ते के बाद बीज अंकुरित होने लगेंगे। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाए तो उन्हें अलग-अलग गमलों में ट्रांसप्लांट कर दें।
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अगर आपके गुलाब के पौधे की ग्रोथ रुक गई है, पत्ते पीले पड़ रहे हैं, फूल आना बंद हो गए है,या फूल छोटे साइज के आ रहे हैं, तो अपने पौधे पर एप्सम सॉल्ट (Epsom Salt) का इस्तेमाल करें ।
इसका इस्तेमाल करने से एक दिन पहले पौधे में पानी देना बंद कर दें, ताकि मिट्टी सूख जाए। उसके बाद, 1 चम्मच एप्सम सॉल्ट को 2 लीटर पानी में मिलाकर पौधे की पत्तियों पर स्प्रे करें और 150-200 मिलीलीटर घोल को पौधे की मिट्टी में भी डालें। 15 दिन बाद दोबारा घोल डालें और उसके बाद 2-3 महीने बाद ही इस घोल का प्रयोग करें। कुछ दिन बाद, आप देखेंगे कि पौधे में फिर से ग्रोथ शुरू हो गई है, और पौधा फिर से स्वस्थ, हरा-भरा और फूल देने लगा है।
अकसर लोगों की शिकायत रहती हैं कि उनका तुलसी जी का पौधा सूख जाता हैं, पौधे के सारे पत्ते झड़ जाते है, पौधा घना नहीं होता ।इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं। उनमें से एक कारण यह भी हैं कि तुलसी के पौधे में ओवर-वाटरिंग हो जाने के कारण इसकी जड़ों में फंगस लग जाता हैं । इससे बचाव के लिए जब भी तुलसी का पौधा लगाएं तो 70% मिट्टी और 30% रेत का इस्तेमाल करें। इससे पानी ज्यादा देर तक नहीं टिकेगा और तुलसी का पौधा लंबे समय तक हरा-भरा रहेगा और पौधे को पानी तभी दे जब गमले की मिट्टी सूखी दिखे।
इसके साथ ही, हर 15 दिन में पानी में हल्दी मिलाकर पौधे और मिट्टी पर स्प्रे करने से तुलसी का पौधा कीड़ों और चिटियों से भी बचा रहेगा।
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ऐसा कभी ना हों 😥😥आखिरी सफर - लास्ट फोटो 😥 ऐसे तो सल्ट बस दुर्घटना में हर मृतक की जिंदगी की यादे रह गयी लेकिन एक दम्पप्ति की दुःखद खबर झकझोर कर देगी _
इंजीनियर प्रवीन और उनकी पत्नी सोनी को नहीं पता था कि यह उनका आखिरी सफर होगा
कूपी बैंड की खाई में गिरकर टूट गया संग जीने का सपना सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रवीण सिंह पुत्र भूपाल सिंह और उनकी पत्नी सोनी को नहीं पता था कि जिस बस में वे सफर कर रहे हैं यह उनके जीवन का अंतिम सफर होगा। दोनों ने संग-संग जीने के जो सपने संजोए थे वे मरचूला के पास कूपी बैंड के पास गहरी खाई में गिरकर गधेरे में बिखर गए। कोविडकाल में प्रवीण और सोनी की शादी हुई थी। दोनों की जिंदगी हंसी-खुशी चल रही थी। प्रवीण सिंह के दोस्त हिमांशु ने बताया कि कि सोनी और प्रवीण दिवाली मनाने अपने मूलगांव दिगोली आए थे। दिवाली के बाद
वे किनाथ से रामनगर जा रही बस से देहरादून लौट रहे थे। दोनों को सोमवार सुबह ग्रामीणों ने आशीर्वाद देकर हंसी-खुशी विदा किया था लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मौत दोनों का कूपी बैंड के पास इंतजार कर रही है। कूपी
बैंड के पास बस की कमानी का पट्टा तेज आवाज के
आखिरी तस्वीर साथ टूटने के साथ ही वाहन अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई। इस हादसे में सोनी और प्रवीण समेत 36
यात्रियों की जान गई है। हिमांशु ने बताया कि प्रवीण सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और उनकी पत्नी सोनी ने फार्मासिस्ट का कोर्स किया था। कुछ समय पहले ही वे दिल्ली शिफ्ट हुए थे और
किसी काम से देहरादून जा रहे थे। उसके बाद उन्हें दिल्ली जाना था। हिमांशु को अपने दोस्त और उनकी पत्नी की मौत का गहरा सदमा लगा है। यह तस्वीर इनकी आखिरी तस्वीर साबित हुवी