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उत्तराखंड में स्वरोजगार को प्रत्मिकता देते हुए।
चलो मालू - सालू रिवाज को रोज़गार बनाते है
चलो प्लास्टिक थर्माकोल छोड़ मालू - सालू अपनाते है ।।
भागो नही जागो...
चलो कुछ नया करते है। मालू सालू के पत्तों का प्रयोग करते है। पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है और खुद के स्वास्थ्य का ख्याल भी रख सकते है।
यह प्रयोग हम ने इस वजह से किया है कि अगर प्लास्टिक व थर्माकोल के पत्तल दोनों का हम प्रयोग करते है तो प्लास्टिक व कैमिकल के गुण हमारे शरीर में चले जाते है। जिस ने अनेकों बीमारियों का जन्म होता है। अगर हमारे जूठन जानवर खाते है तो उन के पेट में प्लास्टिक व थर्माकोल चला जाता है जिस की वजह से हर साल अनेकों पालतू जानवर अपनी जान गंवा देते है। वनस्पतियों से बने उपकारों से न हमारे स्वास्थ्य को नुकसान होगा न किसी पालतू जानवर की जान जाएगी। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में पतझड़ के बाद जंगलों में पेड़ों प पत्ते झड़ जाते है कुछ महीनों बाद ग्रीष्म ऋतु में हरवर्ष जंगलों में आग लग जाती है जिस की वजह से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। हम सभी पत्तों का स्तेमाल तो नही कर सकते है मगर जितना हो सके कोशिस कर रहे है कि पत्तों का स्तेमाल दोने पत्तल बनाने के लिए करे और रोज़गार के रूप में कर सकते है। ग्रामीण क्षेत्र में सब से बड़ी बिडम्बना रोज़गार की है अगर आमदनी हो जाये तो शिक्षा स्वास्थ्य व अनेकों मूलभूत सुविधाओं का जुड़ना सुरु हो जाएगा। बस यही हमारा लक्ष्य है कि हर किसी का अपना रोज़गार हो हर कोई स्वलम्बी बने....

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उत्तराखंड में स्वरोजगार को प्रत्मिकता देते हुए।
चलो मालू - सालू रिवाज को रोज़गार बनाते है
चलो प्लास्टिक थर्माकोल छोड़ मालू - सालू अपनाते है ।।
भागो नही जागो...
चलो कुछ नया करते है। मालू सालू के पत्तों का प्रयोग करते है। पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है और खुद के स्वास्थ्य का ख्याल भी रख सकते है।
यह प्रयोग हम ने इस वजह से किया है कि अगर प्लास्टिक व थर्माकोल के पत्तल दोनों का हम प्रयोग करते है तो प्लास्टिक व कैमिकल के गुण हमारे शरीर में चले जाते है। जिस ने अनेकों बीमारियों का जन्म होता है। अगर हमारे जूठन जानवर खाते है तो उन के पेट में प्लास्टिक व थर्माकोल चला जाता है जिस की वजह से हर साल अनेकों पालतू जानवर अपनी जान गंवा देते है। वनस्पतियों से बने उपकारों से न हमारे स्वास्थ्य को नुकसान होगा न किसी पालतू जानवर की जान जाएगी। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में पतझड़ के बाद जंगलों में पेड़ों प पत्ते झड़ जाते है कुछ महीनों बाद ग्रीष्म ऋतु में हरवर्ष जंगलों में आग लग जाती है जिस की वजह से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। हम सभी पत्तों का स्तेमाल तो नही कर सकते है मगर जितना हो सके कोशिस कर रहे है कि पत्तों का स्तेमाल दोने पत्तल बनाने के लिए करे और रोज़गार के रूप में कर सकते है। ग्रामीण क्षेत्र में सब से बड़ी बिडम्बना रोज़गार की है अगर आमदनी हो जाये तो शिक्षा स्वास्थ्य व अनेकों मूलभूत सुविधाओं का जुड़ना सुरु हो जाएगा। बस यही हमारा लक्ष्य है कि हर किसी का अपना रोज़गार हो हर कोई स्वलम्बी बने....

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उत्तराखंड में स्वरोजगार को प्रत्मिकता देते हुए।
चलो मालू - सालू रिवाज को रोज़गार बनाते है
चलो प्लास्टिक थर्माकोल छोड़ मालू - सालू अपनाते है ।।
भागो नही जागो...
चलो कुछ नया करते है। मालू सालू के पत्तों का प्रयोग करते है। पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है और खुद के स्वास्थ्य का ख्याल भी रख सकते है।
यह प्रयोग हम ने इस वजह से किया है कि अगर प्लास्टिक व थर्माकोल के पत्तल दोनों का हम प्रयोग करते है तो प्लास्टिक व कैमिकल के गुण हमारे शरीर में चले जाते है। जिस ने अनेकों बीमारियों का जन्म होता है। अगर हमारे जूठन जानवर खाते है तो उन के पेट में प्लास्टिक व थर्माकोल चला जाता है जिस की वजह से हर साल अनेकों पालतू जानवर अपनी जान गंवा देते है। वनस्पतियों से बने उपकारों से न हमारे स्वास्थ्य को नुकसान होगा न किसी पालतू जानवर की जान जाएगी। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में पतझड़ के बाद जंगलों में पेड़ों प पत्ते झड़ जाते है कुछ महीनों बाद ग्रीष्म ऋतु में हरवर्ष जंगलों में आग लग जाती है जिस की वजह से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। हम सभी पत्तों का स्तेमाल तो नही कर सकते है मगर जितना हो सके कोशिस कर रहे है कि पत्तों का स्तेमाल दोने पत्तल बनाने के लिए करे और रोज़गार के रूप में कर सकते है। ग्रामीण क्षेत्र में सब से बड़ी बिडम्बना रोज़गार की है अगर आमदनी हो जाये तो शिक्षा स्वास्थ्य व अनेकों मूलभूत सुविधाओं का जुड़ना सुरु हो जाएगा। बस यही हमारा लक्ष्य है कि हर किसी का अपना रोज़गार हो हर कोई स्वलम्बी बने....

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उत्तराखंड में स्वरोजगार को प्रत्मिकता देते हुए।
चलो मालू - सालू रिवाज को रोज़गार बनाते है
चलो प्लास्टिक थर्माकोल छोड़ मालू - सालू अपनाते है ।।
भागो नही जागो...
चलो कुछ नया करते है। मालू सालू के पत्तों का प्रयोग करते है। पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है और खुद के स्वास्थ्य का ख्याल भी रख सकते है।
यह प्रयोग हम ने इस वजह से किया है कि अगर प्लास्टिक व थर्माकोल के पत्तल दोनों का हम प्रयोग करते है तो प्लास्टिक व कैमिकल के गुण हमारे शरीर में चले जाते है। जिस ने अनेकों बीमारियों का जन्म होता है। अगर हमारे जूठन जानवर खाते है तो उन के पेट में प्लास्टिक व थर्माकोल चला जाता है जिस की वजह से हर साल अनेकों पालतू जानवर अपनी जान गंवा देते है। वनस्पतियों से बने उपकारों से न हमारे स्वास्थ्य को नुकसान होगा न किसी पालतू जानवर की जान जाएगी। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में पतझड़ के बाद जंगलों में पेड़ों प पत्ते झड़ जाते है कुछ महीनों बाद ग्रीष्म ऋतु में हरवर्ष जंगलों में आग लग जाती है जिस की वजह से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। हम सभी पत्तों का स्तेमाल तो नही कर सकते है मगर जितना हो सके कोशिस कर रहे है कि पत्तों का स्तेमाल दोने पत्तल बनाने के लिए करे और रोज़गार के रूप में कर सकते है। ग्रामीण क्षेत्र में सब से बड़ी बिडम्बना रोज़गार की है अगर आमदनी हो जाये तो शिक्षा स्वास्थ्य व अनेकों मूलभूत सुविधाओं का जुड़ना सुरु हो जाएगा। बस यही हमारा लक्ष्य है कि हर किसी का अपना रोज़गार हो हर कोई स्वलम्बी बने....

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