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छठ महापर्व का पहला दिन: नहाए-खाए- व्रती इस दिन नाखनू वगैरह को अच्छी तरह काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैं। इसके बाद नए वस्त्र धारण कर अपने हाथों से साफ-सुथरे व नई माटी के चूल्हे पर अपना भोजन स्वयं बनाकर सूर्यदेव को नैवेद्य देकर भोजन करने के पश्चात् उसी नैवेद्य को प्रसाद रूप में अपने परिवार के सभी सदस्यों को खिलाते हैं।
भोजन में चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा चावल या पहले से ही सुखाए व साफ किए गए गेहूं या चावल के घर में पीसे आटे से निर्मित रोटी शामिल है। जिसे ‘अख़ीन' कहते हैं। तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं। इस दिन को व्रती लोग ‘नहाए-खाए' कहते हैं। इस दिन व्रती सिर्फ एक ही समय भोजन करते हैं।
छ्ठ व्रत काफी कठिन होता है और व्रत संबंधी छोटे-छोटे कार्य के लिए भी विशेष शुद्धता बरती जाती है। लोग इस पर्व को निष्ठा और पवित्रता से मनाते हैं।
उसका एक प्रमाण यह है कि छ्ठ का प्रसाद बनाने के लिए जिस गेंहू से आटा बनाया जाता है, उसको सुखाते समय घर का कोई न कोई सदस्य उसकी रखवाली करता है ताकि कोई पंक्षी उसे जूठा न कर दे। गेहूं सुखाते वक्त व्रती गीत जरूर गाती हैं।
छ्ठ व्रत काफी कठिन होता है और व्रत संबंधी छोटे-छोटे कार्य के लिए भी विशेष शुद्धता बरती जाती है। लोग इस पर्व को निष्ठा और पवित्रता से मनाते हैं।
उसका एक प्रमाण यह है कि छ्ठ का प्रसाद बनाने के लिए जिस गेंहू से आटा बनाया जाता है, उसको सुखाते समय घर का कोई न कोई सदस्य उसकी रखवाली करता है ताकि कोई पंक्षी उसे जूठा न कर दे। गेहूं सुखाते वक्त व्रती गीत जरूर गाती हैं।