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रामायण अपने आप में एक असीम और गूढ़ सागर है। इसकी गहराई को पूरी तरह समझ पाना अत्यंत कठिन है। इस ग्रंथ की प्रत्येक पंक्ति में अर्थ के अनगिनत स्तर छिपे हैं, जिन्हें समझने के लिए केवल बुद्धि नहीं, बल्कि भक्ति और अनुभूति की आवश्यकता होती है।
विभिन्न विद्वानों, कवियों और संतों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से रामायण की व्याख्या की है। किसी ने इसे दर्शन के रूप में देखा, किसी ने प्रेम का ग्रंथ माना, तो किसी ने इसे जीवन के आदर्शों का मार्गदर्शन बताया।
जैसे कि हमने अपने पूर्व लेख में आपको बताया था कि भगवान भी अवकाश पर जाते हैं, वैसे ही आज हम उस पवित्र तिथि के विषय में बता रहे हैं जब स्वयं भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं और पुनः सृष्टि का संचालन आरंभ करते हैं। यह तिथि है — देवउठनी एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
पंचांग के अनुसार भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की पूजा के लिए समर्पित देवउठनी एकादशी इस साल 01 और 02 नवंबर को मनाई जाएगी. जिसमें 01 तारीख को स्मार्त और 02 तारीख को वैष्णव परंपरा को मानने वाले व्रत और पूजन करेंगे।
आज का वैदिक पंचांग
संस्कृति, श्रद्धा और सनातन ज्योति से ओतप्रोत यह पंचांग आपको दिन के शुभ-अशुभ संकेत प्रदान करता है।
नारदपुराण के अनुसार ऊर्ज्शुक्लत्रयोदश्यामेकभोजी द्विजोत्तम । पुनः स्नात्वा प्रदोषे तु वाग्यतः सुसमाहितः ।। १२२-४८ ।।
प्रदीपानां सहस्रेण शतेनाप्यथवा द्विज । प्रदीपयेच्छिवं वापि द्वात्रिंशद्दीपमालया ।। १२२-४९ ।।
घृतेन दीपयेद्द्वीपान्गंधाद्यैः पूजयेच्छिवम् । फलैर्नानाविधैश्चैव नैवेद्यैरपि नारद ।। १२२-५० ।।
ततः स्तुवीत देवेशं शिवं नाम्नां शतेन च । तानि नामानि कीर्त्यंते सर्वाभीष्टप्रदानि वै ।। १२२-५१ ।।