Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
यह संसार मेरी अपेक्षा से चले, इससे ही तो क्रोध पैदा होता है। जिस-जिस को तुमने अपनी अपेक्षा से चलाना चाहा, उसी पर क्रोध होता है। इसलिए जिनसे तुम्हारी जितनी ज्यादा अपेक्षा होती है, उनसे तुम्हारा उतना ही क्रोध होता है। पत्नी पति पर आग-बबूला हो जाती है; हर किसी पर नहीं होती। हर किसी पर होने का सवाल ही कहां है? अपेक्षा ही नहीं है। जिससे अपेक्षा है.। बाप बेटे पर क्रोधित हो उठता है--अपेक्षा है। बड़ी आशाएं बांधी हैं इस बेटे से और यह सब तोड़े दे रहा है। सोचा था, यह बनेगा, वह बनेगा, बड़े सपने देखे थे--और यह सब उलटा ही हुआ जा रहा है।
जिससे तुम्हारी अपेक्षा है, ध्यान रखना वहीं-वहीं क्रोध पैदा होता है। जिनसे तुम्हारे कोई संबंध नहीं हैं, कोई क्रोध पैदा नहीं होता। पड़ोसी का लड़का भी बर्बाद हो रहा है, वह भी शराब पीने लगा है--मगर इससे तुम्हें चिंता नहीं होती।
ओशो।