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छत्तीसगढ़ के कोंडागांव के रहने वाले 62 वर्षीय कुम्हार अशोक चक्रधारी की अपनी कोई दुकान नहीं है, इसलिए आस-पास के गांवों में रहने वाले लोग उनके घर आकर उनकी बनाई कलाकृतियां खरीदते हैं।
अशोक कहते हैं, “हम पीढ़ियों से मिट्टी शिल्पकला आ रहे हैं, यह मेरा पुश्तैनी काम है, जो मैंने अपने पिता से सीखा था। बचपन से यही मेरी कला है, और यही हमारा रोज़गार भी है। मेरी तीन बच्चियां हैं, वे पढ़ने जाती हैं और मेरा हाथ भी बंटाती हैं। उनमें भी कहीं न कहीं यह कला है।
मैं अपनी कला को और निखारते रहने के लिए नए-नए आईडिया सोचता रहता हूँ और कुछ ऐसा बनाता रहता हूँ जो मेरे आस-पास लोगों के काम आ सके।
2019 में, दिवाली के पहले मैं दीया बनाने के नए डिजाइन के बारे में सोच रहा था, तभी मैने एक यूट्यूब वीडियो में ऐसा दीया देखा जो अपने आप देर तक जलता था। उसमें तेल भरकर रखने के लिए एक कुंड था, जिससे दीया खाली नहीं होता था और जलता रहता था। मुझे यह बहुत दिलचस्प लगा और मैंने खुद यह दीया बनाना शुरू कर दिया।
5-6 बार कोशिश करने के बाद मैंने 1 हफ्ते में इसे बना दिया। हर बार मैंने बेहतर डिज़ाइन बनाया और उसको जलाकर टेस्ट करता था। इस तरह फाइनल दीया बना, जो कम से कम 24 घंटे तक लगातार जलता रह सकता है।"
पहले साल उन्होंने 100 दीया बेचे। दूसरे साल उन्होंने इसे दुर्गा पूजा में भी बनाया और 200 रुपए में 1 दीया बेचा। इसके बाद उन्होंने इस दीया का वीडियो Facebook पर डाला, जिससे उन्हें कई फोन कॉल आने शुरू हो गए। देश के कोने-कोने से उन्हें हज़ारों दीया के ऑर्डर मिले और लोग इसे Magic Lamp कहने लगे।
अगर आप भी इस दिवाली अशोक से ये खास दीया खरीदना चाहते हैं तो उन्हें 9165185483 पर संपर्क कर सकते हैं।
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[Inspiring | Motivation | Diya | Creativity | Never Giv Up | Diwali | Festival ]
इंटरनेशनल गायिका मैथिली ठाकुर जिनके उत्तराखंड में इन दिनों हर घर में चर्चे हैं, कैसे बिहार से ताल्लुक़ रखने वाली लड़की उत्तराखंड में धमक क़ायम कर गई. मैथिली ने हल्द्वानी पहुँचकर हम सभी लोगों को अपनी संस्कृति की ओर बढ़ने और उसे अपनाने के लिए प्रेरित किया है.
“बेडू पाको बारामासा” …. और “सुआ रे सुआ” जैसे गीतों पर मैथिली ने जैसे ही हारमोनियम पर अपना हाथ रखा तो मानों पूरा पहाड़ सहित उत्तराखंड सोशल मीडिया में थिरकने को मजबूर हो गया.
मैथिली से मिलकर बिल्कुल भी ऐसा अनुभव प्रतीत नहीं हुआ कि वह बिहार मूल की हैं, बिहार के लोग हमेशा अपने पर्वों के लिए संजीदा रहते हैं वह फिर छट, करवाचौथ हो या फिर कोई और फ़ैस्टिवल मैथिली से बात करके ऐसा लग रहा था कि वह उत्तराखंड के 13 ज़िलों में से किसी एक ज़िले से हल्द्वानी के क़ुमाऊँ द्वार महोत्सव में परफॉरमेंस देने आयी हैं.
मेरा सवाल यही था कि हम अपने कल्चर फ़ोक और विरासत को छोड़ रहे हैं, तब उनका कहना था अब लोग फिर अपनी जड़ों से जुड़ने लगे हैं. उन्होंने तो इंटरनेट मीडिया से उत्तराखंड के इन सांग्स को सुनकर सीख लिया.
यानी स्पष्ट है की जिन पेड़ों की जड़ें मज़बूत नहीं होती हैं वह जल्दी धराशायी हो जाते हैं, इसलिए समय हैं हर किसी की अपनी संस्कृति से जुड़ने और बोलने और समझने का.
यानी मैं ऐसा आपसे बिल्कुल नहीं कहूँगा कि आप कल्चर अपनाने के लिए पहाड़ आ जाओ, आप जहाँ भी रोज़गार या अन्य प्रयोजन के लिए गए हैं… हाँ इतना ज़रूर कहूँगा कि अपने बच्चों को अपनी - अपनी संस्कृति से ज़रूर जोड़े रखें,
आज के नौजवान युवक युवतियों से जब पूछा जाता है आप पहाड़ी बोल लेते हैं उनका जवाब आता है बोल नहीं पाते पर समझ ज़रूर जाते हैं, उत्तराखण्ड में लगभग 2 मिलियन लोग वर्तमान में कुमाऊँनी गढ़वाली बोलते हैं, अगर हमने इसे बचाया नहीं तो यह संख्या कब गिर जाएगी पता नहीं चलेगा.
इंटरव्यू का लिंक कॉमेंट बॉक्स पर है.
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एक पैर नहीं है फिर भी बहन ने देश के दोड़ में मेडल जीता है बधाई नहीं दोगे
दिसंबर 2011 की एक रात, किरण कनौजिया फरीदाबाद अपने घर जा रही थीं, उत्साहित थीं क्योंकि 25 दिसंबर को अपने परिवार के साथ अपना जन्मदिन मनाने वाली थीं। 🎉🎂 उन्होंने अपना बैग कंधे पर डाला और ट्रेन के दरवाजे पर बैठ गईं। लेकिन अगले कुछ पलों में उनकी जिंदगी पूरी तरह बदलने वाली थी।
किरण को याद है कि दो लड़कों ने उनके बैग को छीनने की कोशिश की और उन्हें ट्रेन से बाहर धकेल दिया। वह चीखते हुए पटरियों पर गिर पड़ीं, ट्रेन रुक गई। उन्होंने हिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अपना बायां पैर महसूस नहीं हुआ। अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर किरण अस्पताल के बिस्तर पर लेटी थीं और ‘पैर बचाने’ के बारे में बातचीत सुन रही थीं। तभी उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने क्या खो दिया है। 😢💔
“मैं सोच रही थी, ‘मुझे अपने जन्मदिन पर बधाई मिलनी चाहिए, न कि अपने अंग को काटने की स्वीकृति देने के लिए सहमति पत्र।’ लेकिन मैंने उस पर हस्ताक्षर कर दिए।” 🖋️😔
आज, 28 वर्षीय किरण एक चैंपियन ब्लेड रनर हैं और इस भयावह दुर्घटना ने उनकी यात्रा को गति दी। किरण हैदराबाद में इंफोसिस में काम करती हैं और उनके माता-पिता फरीदाबाद में ठेले पर कपड़े प्रेस करने का छोटा सा व्यवसाय