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किसान का बेटा जीवन जी नहीं रहा है शहर की गलियो से लेकर सेठो की फ़ैक्ट्रियों में पीस रहा है।कलेक्टर अपने बेटे को कलेक्टर बनाना चाहता है,मास्टर अपने बेटे को मास्टर नेता अपने बेटे को अधिकारी ओर डाक्टर अपने बेटे को डाक्टर बनाना चाहते हैं फिर किसान अपने बेटे को किसान क्यों नहीं बनाना चाहते।क्या किसानी इतनी ख़राब है।जबकि हमारे यहाँ कहावत है की उतम खेती,मध्यम व्यापार ओर खराब नौकरी।
हमारे गाँवों में बुजुर्ग माताओ ने कभी करवा चौथ नहीं मनाई अब सोशल मीडिया री नाटक बिनणियो ने देख बस असूबो करे है कि केड़ी केड़ी रीता आई है।कोई सोशल मीडिया री कंटेंट क्रियेटर री देखा देखी ऊबी रोला करे है तो कोई घटिया कामेडियन उणी रीत भांत रो मजाक बणावे है।हैरानी तो तब हुवे जद लोग उण छपरियो ने मंच माते भले बुलावे है।संस्कृति बिगाड़ने का जो काम अंग्रेज़ नही कर पाये वो काम ये अंग्रेज़ों की कंपनियाँ दो पैसे के टुकड़े डालकर करवा रही हैं।दो कोड़ी के इन तथाकथित कलाकारों मे कला नाम की कोई चीज नहीं है ।