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ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
देवाधिदेव महादेव की भक्ति, तप, व्रत शक्ति और आराधना के पवित्र माह श्रावण मास के चतुर्थ सोमवार के पावन अवसर पर खालसा गर्ल्स इंटर कॉलेज में आयोजित भंडारे में पहुंचकर छात्र छात्राओं को प्रसाद वितरित किया...
यहां प्रधानाचार्या हरमीत कौर जी,राजू गेरा, अंबुज शुक्ला, प्रींशु शुक्ला, विनोद सेंगर, शुभम शुक्ला,विपुल त्रिवेदी,विशाल वधावन, हर्ष तनेजा, संजय मग्गो, संजय दुआ, नवीन तनेजा,कमल भोजवानी, संजय दानी सहित अन्य उपस्थित रहे...
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
देवाधिदेव महादेव की भक्ति, तप, व्रत शक्ति और आराधना के पवित्र माह श्रावण मास के चतुर्थ सोमवार के पावन अवसर पर खालसा गर्ल्स इंटर कॉलेज में आयोजित भंडारे में पहुंचकर छात्र छात्राओं को प्रसाद वितरित किया...
यहां प्रधानाचार्या हरमीत कौर जी,राजू गेरा, अंबुज शुक्ला, प्रींशु शुक्ला, विनोद सेंगर, शुभम शुक्ला,विपुल त्रिवेदी,विशाल वधावन, हर्ष तनेजा, संजय मग्गो, संजय दुआ, नवीन तनेजा,कमल भोजवानी, संजय दानी सहित अन्य उपस्थित रहे...
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
देवाधिदेव महादेव की भक्ति, तप, व्रत शक्ति और आराधना के पवित्र माह श्रावण मास के चतुर्थ सोमवार के पावन अवसर पर खालसा गर्ल्स इंटर कॉलेज में आयोजित भंडारे में पहुंचकर छात्र छात्राओं को प्रसाद वितरित किया...
यहां प्रधानाचार्या हरमीत कौर जी,राजू गेरा, अंबुज शुक्ला, प्रींशु शुक्ला, विनोद सेंगर, शुभम शुक्ला,विपुल त्रिवेदी,विशाल वधावन, हर्ष तनेजा, संजय मग्गो, संजय दुआ, नवीन तनेजा,कमल भोजवानी, संजय दानी सहित अन्य उपस्थित रहे...
लोक गीत सुनने की शुरुवात सन् 2011 (वीर भडू कु देश)को गाड़ी में पेन ड्राइव लगा कर गीत के तथ्य और इतिहास को समझ कर शुरू हुई, उससे पहले हल्के फुल्के रूप में हिंदी और अन्य आंचलिक गीत शादी ब्याह और गाड़ी में सुनना समझना चलता रहता था, हर्षु मामा तब शायद नया गीत रिलीज हुआ था और क्रमश उसके बाद 2013 में (देहरादून वाला हूं). इतने वर्षो तक नेगी जी को सुनने के उपरांत यह तो मैं भी स्वीकार करने लग गया हूं की उन्होंने अपने स्वयं के संगीत तराजू में पहाड़ की महिलाओं को और स्वयं पहाड़ को ज्यादा वजन देकर बहुत से अनछुए पहलू हमारे लिए छोड़ दिए हैं।
इस पूरी गीत यात्रा में महिलाओं की वेदना खासकर, नेगी जी का ध्यान गया है,
लड़की के महिला होने की यात्रा विवाह से शुरू होते हुए नेगी जी ने मायके से शुरवात कर मेरी बेटूली मेरी लाडी लठियाली गीत गाकर सन् 2002 से 2009 के शादी फोटोग्राफरों को एक गीत की सौगात दी है, गाना शायद उस दौर की महिलाओं के लिए हिदायत भी है ( मुख न लगी दाना सयानाओ का, प्रेम से रही, भलू बुरु जनी होलू,भाग मा बेटी, टुप सहदेई)
विदाई से पहले के संस्कार फेरों और दान करते हुए जहां देवर भाभी में हल्का फुल्का मजाक और मीठी नोकझोक चल रही है उसके ( घागरी का घेरा पौणा ड्यूर राजी रयान) देवर जहां बेदी में अड़ जाए जैसे गीत कानो के लिए और विवाह संस्कृति में बेदी में दान की अटैची, गुलाबंद, पूजा की सुपारी, सजी हुई बैठक, और बारात को वापिस जाने की जल्दी जैसी विवाह संस्कारों का दर्पण पेश करती है, इन दोनो गीतों में नायिका को नेगी जी ने केंद्र में रखा है।
विवाह के बाद
हेजी काई बाई न करा मठ मठु जौला नयू नयु ब्यो छा मीठी मीठी छुएं लगौला जैसे गीतों में इसी गीत में अगले दिन खेत ( पुंगडियो) में काम करने का इशारा और महिला की परिकल्पना वाला ससुराल न मिलना महिला की निराशा और पूरे गीत की टोन को उत्साह से निराशा में बदलते हुए गीत को विराम लगता है.( भोल पार्सियो बीती पंगडियों जानी तीन , कनु कैकी खैली चूची कोंग्लियो हाथ खुटियों न, हाल ये छन जवानी मां बुधेंदा क्या होला ) इशारा कर रहे है महिलाओं के ऊपर कृषि और घर संबंधित अपेक्षाओं से, कैसे परिवार में विवाह को कृषि में श्रमशक्ति से जोड़ के देखा जाता रहा है,
लोक गीत सुनने की शुरुवात सन् 2011 (वीर भडू कु देश)को गाड़ी में पेन ड्राइव लगा कर गीत के तथ्य और इतिहास को समझ कर शुरू हुई, उससे पहले हल्के फुल्के रूप में हिंदी और अन्य आंचलिक गीत शादी ब्याह और गाड़ी में सुनना समझना चलता रहता था, हर्षु मामा तब शायद नया गीत रिलीज हुआ था और क्रमश उसके बाद 2013 में (देहरादून वाला हूं). इतने वर्षो तक नेगी जी को सुनने के उपरांत यह तो मैं भी स्वीकार करने लग गया हूं की उन्होंने अपने स्वयं के संगीत तराजू में पहाड़ की महिलाओं को और स्वयं पहाड़ को ज्यादा वजन देकर बहुत से अनछुए पहलू हमारे लिए छोड़ दिए हैं।
इस पूरी गीत यात्रा में महिलाओं की वेदना खासकर, नेगी जी का ध्यान गया है,
लड़की के महिला होने की यात्रा विवाह से शुरू होते हुए नेगी जी ने मायके से शुरवात कर मेरी बेटूली मेरी लाडी लठियाली गीत गाकर सन् 2002 से 2009 के शादी फोटोग्राफरों को एक गीत की सौगात दी है, गाना शायद उस दौर की महिलाओं के लिए हिदायत भी है ( मुख न लगी दाना सयानाओ का, प्रेम से रही, भलू बुरु जनी होलू,भाग मा बेटी, टुप सहदेई)
विदाई से पहले के संस्कार फेरों और दान करते हुए जहां देवर भाभी में हल्का फुल्का मजाक और मीठी नोकझोक चल रही है उसके ( घागरी का घेरा पौणा ड्यूर राजी रयान) देवर जहां बेदी में अड़ जाए जैसे गीत कानो के लिए और विवाह संस्कृति में बेदी में दान की अटैची, गुलाबंद, पूजा की सुपारी, सजी हुई बैठक, और बारात को वापिस जाने की जल्दी जैसी विवाह संस्कारों का दर्पण पेश करती है, इन दोनो गीतों में नायिका को नेगी जी ने केंद्र में रखा है।
विवाह के बाद
हेजी काई बाई न करा मठ मठु जौला नयू नयु ब्यो छा मीठी मीठी छुएं लगौला जैसे गीतों में इसी गीत में अगले दिन खेत ( पुंगडियो) में काम करने का इशारा और महिला की परिकल्पना वाला ससुराल न मिलना महिला की निराशा और पूरे गीत की टोन को उत्साह से निराशा में बदलते हुए गीत को विराम लगता है.( भोल पार्सियो बीती पंगडियों जानी तीन , कनु कैकी खैली चूची कोंग्लियो हाथ खुटियों न, हाल ये छन जवानी मां बुधेंदा क्या होला ) इशारा कर रहे है महिलाओं के ऊपर कृषि और घर संबंधित अपेक्षाओं से, कैसे परिवार में विवाह को कृषि में श्रमशक्ति से जोड़ के देखा जाता रहा है,
लोक गीत सुनने की शुरुवात सन् 2011 (वीर भडू कु देश)को गाड़ी में पेन ड्राइव लगा कर गीत के तथ्य और इतिहास को समझ कर शुरू हुई, उससे पहले हल्के फुल्के रूप में हिंदी और अन्य आंचलिक गीत शादी ब्याह और गाड़ी में सुनना समझना चलता रहता था, हर्षु मामा तब शायद नया गीत रिलीज हुआ था और क्रमश उसके बाद 2013 में (देहरादून वाला हूं). इतने वर्षो तक नेगी जी को सुनने के उपरांत यह तो मैं भी स्वीकार करने लग गया हूं की उन्होंने अपने स्वयं के संगीत तराजू में पहाड़ की महिलाओं को और स्वयं पहाड़ को ज्यादा वजन देकर बहुत से अनछुए पहलू हमारे लिए छोड़ दिए हैं।
इस पूरी गीत यात्रा में महिलाओं की वेदना खासकर, नेगी जी का ध्यान गया है,
लड़की के महिला होने की यात्रा विवाह से शुरू होते हुए नेगी जी ने मायके से शुरवात कर मेरी बेटूली मेरी लाडी लठियाली गीत गाकर सन् 2002 से 2009 के शादी फोटोग्राफरों को एक गीत की सौगात दी है, गाना शायद उस दौर की महिलाओं के लिए हिदायत भी है ( मुख न लगी दाना सयानाओ का, प्रेम से रही, भलू बुरु जनी होलू,भाग मा बेटी, टुप सहदेई)
विदाई से पहले के संस्कार फेरों और दान करते हुए जहां देवर भाभी में हल्का फुल्का मजाक और मीठी नोकझोक चल रही है उसके ( घागरी का घेरा पौणा ड्यूर राजी रयान) देवर जहां बेदी में अड़ जाए जैसे गीत कानो के लिए और विवाह संस्कृति में बेदी में दान की अटैची, गुलाबंद, पूजा की सुपारी, सजी हुई बैठक, और बारात को वापिस जाने की जल्दी जैसी विवाह संस्कारों का दर्पण पेश करती है, इन दोनो गीतों में नायिका को नेगी जी ने केंद्र में रखा है।
विवाह के बाद
हेजी काई बाई न करा मठ मठु जौला नयू नयु ब्यो छा मीठी मीठी छुएं लगौला जैसे गीतों में इसी गीत में अगले दिन खेत ( पुंगडियो) में काम करने का इशारा और महिला की परिकल्पना वाला ससुराल न मिलना महिला की निराशा और पूरे गीत की टोन को उत्साह से निराशा में बदलते हुए गीत को विराम लगता है.( भोल पार्सियो बीती पंगडियों जानी तीन , कनु कैकी खैली चूची कोंग्लियो हाथ खुटियों न, हाल ये छन जवानी मां बुधेंदा क्या होला ) इशारा कर रहे है महिलाओं के ऊपर कृषि और घर संबंधित अपेक्षाओं से, कैसे परिवार में विवाह को कृषि में श्रमशक्ति से जोड़ के देखा जाता रहा है,
𝐋𝐞𝐚𝐫𝐧 𝐭𝐡𝐞 𝐬𝐭𝐫𝐚𝐭𝐞𝐠𝐢𝐞𝐬, 𝐚𝐩𝐩𝐥𝐲 𝐭𝐡𝐞 𝐤𝐧𝐨𝐰𝐥𝐞𝐝𝐠𝐞, 𝐚𝐧𝐝 𝐰𝐚𝐭𝐜𝐡 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐛𝐮𝐬𝐢𝐧𝐞𝐬𝐬 𝐭𝐡𝐫𝐢𝐯𝐞! 🌟📈
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𝐅𝐢𝐧𝐝𝐢𝐧𝐠 𝐛𝐚𝐥𝐚𝐧𝐜𝐞 𝐢𝐧 𝐥𝐢𝐟𝐞 𝐢𝐬 𝐤𝐞𝐲: 𝐍𝐨𝐭 𝐄𝐧𝐨𝐮𝐠𝐡 𝐒𝐭𝐫𝐞𝐬𝐬, 𝐉𝐮𝐬𝐭 𝐑𝐢𝐠𝐡𝐭 𝐒𝐭𝐫𝐞𝐬𝐬, 𝐓𝐨𝐨 𝐌𝐮𝐜𝐡 𝐒𝐭𝐫𝐞𝐬𝐬. 𝐃𝐢𝐬𝐜𝐨𝐯𝐞𝐫 𝐡𝐨𝐰 𝐭𝐨 𝐦𝐚𝐧𝐚𝐠𝐞 𝐬𝐭𝐫𝐞𝐬𝐬 𝐞𝐟𝐟𝐞𝐜𝐭𝐢𝐯𝐞𝐥𝐲 𝐚𝐧𝐝 𝐚𝐜𝐡𝐢𝐞𝐯𝐞 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐠𝐨𝐚𝐥𝐬 𝐰𝐢𝐭𝐡 𝐭𝐡𝐞 𝐫𝐢𝐠𝐡𝐭 𝐚𝐩𝐩𝐫𝐨𝐚𝐜𝐡! 🌟💼
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