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सहमत
यह समाज, जैसा त्रेता , द्वापर में था वैसा ही कलियुग में भी है...
जगदम्बा सीता को लेकर , मर्यादापुरुषोत्तम भगवान की जो कुछ लोग आलोचना करते है।
उनको करना चाहिये।
वह अपनी जगह सही है।
कुछ भी अतिशयोक्ति या अनर्गल नहीं कह रहा हूँ। अध्ययन और चिंतन से मैं यही समझा।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी, ज्ञानवान थे। वह जानते थे कि हर युग में बुद्धिहीन, कुंठित लोग होंगें।
राम कि नहीं करेंगे, तो माता सीता कि करेंगें। इसलिये सारा अपयश उन्होंने स्वयं पर ले लिया। सीता जी को इन सब से मुक्त कर दिया।
भगवान राम और सीता जी मे कितना प्रेम है। वाल्मीकि रामायण में वनगमन के 13 वर्ष पढ़िये। वह लोग ऐसे है जैसे कि वन में ही न हो।
एक एक पशु , पंछी, वनस्पति , नदी , पहाड़ को भगवान, सीता जी को बताते है।
देखो सीते, यह गंगा है, गोमती है, नर्मदा है, गोदावरी है।
यह अत्रि का आश्रम है, यह भरद्वाज का आश्रम है, यह कपिल का आश्रम है, यह अगस्त का आश्रम है --।
यह जामुन है, यह आम है, यह चमेली है, यह कमल है ---।
सीता जी ऐसे सब सुनती है, जैसे कोई अबोध बालक जिसे कुछ पता ही न हो।
ऐसा लगता है, राम सीता वन

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