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पार्वती नदी के पास भितरवार किला 17 वीं शताब्दी में बनाया गया था। जिसका राजा भेराजशाह था जो जाट क्षत्रिय था। इस तरह के लेख इतिहास के पन्नों में मिलते हैं। राजा दो भाई थे। दूसरे भाई का नाम लक्ष्मण सिंह था जो लक्ष्मणगढ किले में रहता था वह धार्मिक प्रव्रत्ति का था

श्यामपुर राजान मंदिर पर एक भागवत आचार्य ने इस नगर के संबंध में कहा

भितरवार के नाम के टीका हुए अनेक।
भितरवार उसे कहें जो भितरवार एक।

भितरवार का किला नौमंजिला है | किले की सुरक्षा की दृष्टि से चारों ओर पांच फीट मोटी दीवारे हैं। तोप के हमले से बचाव के लिए दीवारों में मिट्टी डाली जाती थी, जिस पर दुश्मनों की तोप के गोले मिट्टी पर बेअसर साबित होते थे।
किले पर सुरक्षा की दृष्टि से मुख्य द्वार पर एक बुर्ज का निर्माण किया गया था जिस पर करीब 52 गुर्द बने थे। जिन पर 52 तोप के साथ बंदूकधारी हमेशा तैनात रहते थे।किले के उत्तर दिशा में एक हाथीखाना बनाया गया था, जिसमें करीब 20 से ज्यादा हाथी रहते थे।

जाट राजा ने समूचे किले पर निगरानी के लिए नौवीं मंजील पर एक गोपनीय बैठक हॉल बनाया था, जिसमें राजा संकट के समय अपने दरबारियों के साथ बैठकर दुश्मन राजा की हर चाल का मुआयना करता था। रानियों के लिए 15 कमरों वाला रानी महल बनवाया था। इसके अलावा रंगमहल, राजदरबार, शाही मेहमान शाह, पाकशाला, घुड़साल, तींरदाजी व युद्ध के प्रशिक्षण के लिए अलग से परिसर बनवाए गए थे।
मानवेन्द्र सिंह
किले की उत्तरी दिशा में पेयजल की समस्या के निवारण के लिए एक बावड़ी का निर्माण कराया गया था। बावड़ी में हमेशा ही जल की मात्रा उचित मात्रा में बनी रहती थी। कहा जाता है कि इस बावड़ी में कभी भी जल की कमी नहीं हुई। इसी बावड़ी से पूरे किले में पेयजल की व्यवस्था की जाती थी। वर्तमान में भी यह बावड़ी मौजूद है। जाट राजा के वंशज मोहनगढ़ व देवगढ़ में निवास करते है।

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