उसका मायका सिर्फ उसके जीने तक उसके ससुराल वालों को याद रहता है..ननिहाल से ज्यादा लगाव हो तो एक पीढ़ी और चला लेते हैं उसके बच्चे, फिर काल चक्र में उसका मायका उपेक्षित हो जाता है. जीवन के अंतिम चक्र में धुंधलाई आँखें भी तो अपना बचपन याद करती होंगी...कुछ खटकता तो होगा ...ऐसे में जो मज़ा आजी/ दादी /अम्मा /ताई को उनके मायके तक ट्रेन , बस,जीप,टेम्पो तक छोड़ने में था..बस पूछो मत.. बुढ़िया माई की आत्मा तृप्त हो जाती थी और खूब सारा आशीर्वाद मिलता था और हाथो में मीठा (हाथों पर चुम्मी )..सो अलग से..

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