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एक थे रोनाल्डो हेनरी निक्सन. इंग्लैंड निवासी अंग्रेज थे और मात्र 18 वर्ष की उम्र में प्रथम जर्मनी युद्ध में उन्होंने बड़े अफसर के रूप में भाग लिया था. महराज अशोक महान के समान नरसंहार से इतने व्यथित हुए कि सेना छोड़ दी. घूमते हुए एक दिन कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पहुंच गये, यहाँ उन्हें सनातन, वेदांत, ईश्वर और महात्मा बुद्ध के बारे में जानकारी मिली तो काफी प्रभाव पडा़, ऐक दिन भारत आ गए. भारत में टहलते हुए ब्रज आ गये और फिर यहाँ आकर कृष्ण के दिवाने हो गये. कृष्ण को छोटा भाई समझने लगे.और दिन रात उनकी पुजा अराधना में लगे रहते, सदा कि तरह एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर भोग लगाया. पर्दा हटा कर देखा तो, कटोरी में छोटी-छोटी अँगुलियों के निशान जेसे थे, जिन्हें देख कर वे आश्चर्य चकित हो कर रोने लगे कि उन्हें भगवान शायद इतना प्रेम करते हैं कि भोग खाने बाल स्वरूप में ही स्वयं आते हैं. निक्सन कृष्ण को प्रतिदिन भोजन करा कर और सुला कर ही स्वयं सोते थे. कहते हैं कि सर्दियों के मौसम में निक्सन कुटिया के बाहर सो रहे थे तभी, मध्य रात्रि को उन्हें लगा कोई आवाज दे रहा है .. हो दादा ... हो दादा ... वे हड़बड़ा कर उठकर अंदर गये. देखा तो, कोई नहीं दिखा. भ्रम समझ कर पलटे , दुबारा लेटे ही थे कि फिर से कानो में यह आवाज पडी़ . हो दादा ... हो दादा ..वह तेजी से उठे. पर्दा हटा कर देखा तो, कृष्ण को रजाई ओढ़ाना भूल गए थे उस दिन. वे कृष्ण के पास बैठ गए और बड़े प्यार से बोले आपको भी सर्दी लगती है क्या? निक्सन का इतना कहना था कि कृष्ण की प्रतिमा की आँखों से आंसुओं की धारा बहती महसूस हुई. निक्सन हकबकाये देखते रह गये, फीर ऐकाऐक उनके साथ निक्सन भी फफक-फफक कर रोने लगे, रोने कया स्वयं ही आंखो से आंसू बहने लगे और रोते-रोते अचेत हो गये. शून्य में विलीन हो गये. पंचतत्व में मिल गये. जिसने ब्रज में आकर ही कृष्ण का नाम सुना था, वह कृष्ण का हो गया और कृष्ण उसके हो गये.
हम भी तो कृष्ण के साथ पैदा होते हैं, उनके साथ जीते हैं पर, उनके लिए मरते नहीं.
ऐसे लोग कम होते हैं ,हम अपने स्वार्थ मोह माया में लिपट कर साधारण मौत मर जाते हैं. हम क्यों आये थे, यह पता ही नहीं चल पाता ...
जय श्री कृष्णा।

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