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भक्ति भाव और भाषा के अप्रतिम
श्री राम भक्त शिरोमणि तुलसीदास जी को अपने आराध्य श्रीराम प्रभु के दर्शन हुए थे लोक-श्रुतियों के अनुसार ( उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बांदा और सतना जिले की सीमा पर स्थित ) मंदाकिनी नदी के किनारे पर्वत और वनो से घिरे चित्रकूट मे प्रभु श्रीराम ने उन्हे दर्शन दिए थे। कहा जाता है कि एक प्रेत ने तुलसीदास जी को हनुमान जी से दर्शन के लिए मदद
लेने को कहा था। तुलसीदास जी ने हनुमान जी से बहुत प्रार्थना की तब श्रीहनुमान ने तुलसीदास जी को हा कहा। एक दिन तुलसीदास जी प्रदक्षिणा कर रहे थे तब उसे दो घोडों पर सवार,हाथ मे धनुष-बाण लिए श्रीरामजी और श्री लक्ष्मणजी के दर्शन हुए पर तुलसीदास जी यह प्रभु ही है ऐसा जान न सके। जब हनुमान जी ने प्रगट होकर भेद बताया तो वह बहुत दुखी हुए तब श्रीहनुमान ने तुलसीदास जी को बुधवार संवत 1607 मौनी अमावास्या के दिन फिर से प्रभु के दर्शन होंगे ऐसा कहा ,अमावास्या के दिन
प्रातःकाल तुलसीदास जी जब चंदन घिस रहे थे तब प्रभु श्रीराम जी और श्री लक्ष्मण जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए और चंदन लगाने को कहा। श्री हनुमान जी ने सोचा कि शायद इस बार तुलसीदास जी भुल न कर बैठें इसलिए उन्होंने तोते के रूप मे आकर श्री तुलसीदास जी को कहा,
" चित्रकूट के घाट पर संतो की भीड़ है तुलसीदास जी चंदन घीस रहे है और तुलसीदास जी को खुद रघुवीर चंदन लगा रहे है । यह प्रसंग लोक श्रुति पर आधारित है
जय श्रीराम जय हनुमान

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