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बड़े मग में चाय पीते पीते अचानक मन सालों पीछे चला जाता है। जब ग्लास भरकर चाय मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि थी। सुबह कॉलेज जाते समय जब माँ ऐसे ढेर सारे झाग बनाकर ग्लास में चाय देती थी, जो जल्दी जल्दी पीकर हम कॉलेज भागते थे...कालांतर में पता चला कि वह हमारे साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी होती थी।
पौन ग्लास दूध में पाव ग्लास चाय मिलाकर माँ अपना दूध पिलाओ अभियान भी सफल कर देती थी, और हम फ्रेंड्स के सामने स्टाइल मारते थे कि अब हम तो बड़े हो गए...हम तो चाय पीते हैं।
यूँही... चाय कब चाह बन गई पता ही न चला। घर की दूध उर्फ चाह, कॉलेज की टपरी वाली चाय, फ्रेंड के घर की चाय और कभी कभी पापा के लिए बनाई चाय पर हाथ साफ करते करते कब हम इस फील्ड के महारथी हो गए, पता ही न चला...!
चाय बस चाय नहीं स्वयं को स्वयं का दिया हुआ समय रूपी उपहार है। जब भी खुद के साथ समय व्यतीत करना हो, मैं बना लेती हूँ एक कप चाय।
अकेलेपन की चाय मेरे लिए मी टाइम है। जब मैं और मेरी चाय के बीच कोई नहीं होता। बहुत सी किताबें या लेख मेरी चाय का इंतज़ार करते हैं, क्योंकि वह समय है जब उनकी सुनवाई होती हैं।
एक चाय होती है साथ वाली चाय। जब चाय स्वाद के लिए नहीं बल्कि साथ के लिए पी जाती है। किसी को थोड़ी देर और रोके रखनी की ताकत बस चाय में होती है। किसी से मिलकर साथ चाय पीने का वादा...❤️दुनिया के बड़े से बड़े वादे से ऊपर है।
एक चाय होती है मस्का चाय। जब पापा माँ से कोई बात मनवानी होती है तो बनाई जाती है स्पेशल चाय। पापा को बढ़िया चाय पिलाकर बहुत सी बातें मनवाई हैं मैंने:-))
कुछ चाय होती है जबर्दस्ती वाली चाय। ऐसे बन्दे की चाय जो चाय के नाम पर डिजास्टर बनाता हो, और आपके चाय प्रेम को देखते हुए यदा कदा आपको चाय के लिए आमंत्रित करता हो, अब ना बोलकर न उसका दिल तोड़ा जाता और न वो चाय हलक से नीचे उतरती...!
सबसे खुशनुमा चाय है दोस्तों या परिवार के साथ चाय। चंद पल खुशियों के बढ़ जाते हैं जब सब बैठे हों और कोई पूछ लें;
चाय कौन कौन पिएगा?
हाथ सभी के उठेंगे पर कहा जाएगा आधा कप....पर चाहा जाएगा पौन कप और पिया जा सकेगा पूरा कप...अहा! वो पल सबसे खूबसूरत पल में से एक।
एक चाय होती है इंतज़ार की चाय। जब आपके हाथ मे चाय और मन मे इंतज़ार हो, यादें हो या हो बहुत सारी बातें। चुप बैठकर जब एक एक घूंट गले से उतरता हैं, तो लगता है जैसे बहुत कुछ जो ज़ज्ब था, वह आँखों के रास्ते निकल रहा है....!
ख़ैर...
मॉरल ऑफ द स्टोरी यह है कि...
जिसने जीवन मे ग्लास भर चाह न पी...वह जीवन के बड़े सुख से वंचित है। चाय चाहत है इसलिए चाय चाह है! बस यही सोचकर हम बना लाए अपने लिए ग्लास भरकर चाह....बस यह मत पूछिएगा यह कौनसी कैटेगरी वाली चाय है।
आप अपनी चाय बनाइये और खुद तय कीजिये।
बाकी तो...आल इज वेल!

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