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अतुलित बलधामं...
श्री हनुमान जी के पास इतना बल था कि जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी लक्ष्मण जी को मूर्छित देखकर हनुमान जी को क्रोध आ गया श्री राम के विलाप एवं दुःख को देखकर कहा प्रभु यदि आपकी आज्ञा हो
तौं चंद्रमहि निचोरि चैल-ज्यों, आनि सुधा सिर नावौं
कै पाताल दलौं ब्यालावलि अमृत-कुंड महि लावौं
भेदि भुवन, करि भानु बाहिरो तुरत राहु दै तावौं
बिबुध-बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु-अनुग कहावौं
पटकौं मींच नीच मूषक-ज्यौं, सबहिको पापु बहावौं
मैं चंद्रमा को कपड़े के समान निचोड़ कर उसका अमृत लक्ष्मण के सिर पर डाल दूं
पाताल में सर्पों का दल जो अमृत की रक्षा कर रहा है उस अमृत कुंड को ही उठा लाऊं
भुवन से सूर्य को निकाल कर उसे राहु से ढक दूं जिससे सूर्य निकले ही नहीं
देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को ही यहां उठा लाऊं
मृत्यु को चूहे के समान पटक कर मार दूं जिससे मृत्यु का भय ही न रहे
आखिर हनुमान जी ने यहां तक कहा कि मैं अपने प्राण निकालकर लक्ष्मण के शरीर में डाल दूं
!! जय श्री सीताराम जी !!
!! जय श्री महावीर हनुमान जी !!

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