यूनिपोलर वर्ल्ड के लिये चालीस वर्ष तक शीतयुद्ध लड़ने वाले अमेरिका को भारत समझा रहा है कि यह दुनिया मल्टीपोलर है। कोई एक महाशक्ति रूल नहीं कर सकती है। हम अपने नेशनल इंट्रेस्ट में निर्णय लेंगें।
अमेरिका कि विवशता चीन है। वैसे तो चीन अमेरिका कि ही पैदावार है। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन 1993 में गोबलाइज़ दुनिया की अवधारणा दिया। जिसका सबसे अधिक लाभ चीन ने लिया। 30 वर्षों में ही महाशक्ति बन गया। यह काम अमेरिकी कम्पनियों ने किया।
आज चीन अपनी विस्तारवादी नीति से अमेरिका के गले फ़ांस बन गया है।
उसकी नजर में भारत है जो इसका काउंटर कर सकता है। भारत इस अवसर का लाभ तो चाहता है। लेकिन अपनी स्वंत्रत विदेशनीति को नहीं त्यागना चाहता।
इसका लिटमस टेस्ट हुआ यूक्रेन वार में, जंहा भारत पश्चिमी शक्तियों के साथ खड़ा नहीं हुआ।
यद्यपि भारत कोई महाशक्ति नहीं है। लेकिन वह एक प्राचीन सभ्यता है। जिसका तीसरी दुनिया के देशों में बहुत सम्मान है। यदि भारत यूक्रेन युद्ध में अमेरिका का साथ देता तो रूस कि अनैतिकता सिद्ध होती।
भारत ने ऐसा नहीं किया। उसने अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी देशों कि कठोर आलोचना ही किया। चीन के भय से अमेरिका सहित पश्चिम ने यह सब बर्दाश्त कर लिया।
रेसिसज्म और ईगो से लवरेज पश्चिमी दुनिया इसे भूल जायेगी, यह संभव नहीं है।
एक अस्थिर भारत ही उनके लिये मुफ़ीद है। उनके पास भारत के डाटा है। वह जानते है भारत कि फाल्ट लाइन क्या है।
मजहब, जाति, भाषा यह तीन ऐसे बिंदु है। जिन पर काम पश्चिमी एजेंसियों ने किया।
शाहीनबाग, दिल्ली दंगा यह प्रयोग हो चुके थे।
नूपुर शर्मा के केस को अंतराष्ट्रीय करने श्रेय मुस्लिम बदर्स हुड को है। जबकि सभी को पता था नूपुर शर्मा ने जो कुछ भी कहा। वह रहमानी की प्रतिक्रिया में कहा था।
मिस्र का मुस्लिम बदर्स हुड अमेरिका की उपज है। जिसे राष्ट्रपति ओबामा ने बनाया था। यदि आप कभी तारिक फतेह को सुने हो तो वह ओबामा के आलोचक इसलिये थे। भारत सरकार ने इसे जैसे तैसे नूपुर शर्मा की बलि देकर संभाल लिया।
BBC की डॉक्युमेंट्री का कोई औचित्य नहीं था। 25 वर्ष पूर्व हो चुकी एक घटना को अतिरंजित किया गया। लेकिन इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के लिये था।
केन्द्रीय सरकार पर पिछले 9 वर्षों में कोई भ्र्ष्टाचार का आरोप नहीं है। न ही उसका कोई ऐसा निर्णय है जो समाज विरुद्ध हो। यह एक सोसलिस्ट सरकार है। जिसने समाज के गरीब तबके को केंद्रित करके अपनी आर्थिक नीति बना रही है।
फिर भी इस सरकार के विरुद्ध भारत जोड़ो यात्रा का अर्थ क्या था। ' जोड़ो ' में पोलेटिकल करेक्टनेस कि थीम है। जिसे अमेरिका में बैठे लोगों ने बनाई थी। इस यात्रा में चलने वाले लोग राजनीति से कम NGO, मिशनरियों के अधिक थे। जार्ज सोरेस फण्डित ओपन सोसायटी NGO ने प्रमुख भूमिका निभाई।
आपने अभी देखा कैसे एक ट्रक ड्राइवर को दुबई से भारत लाकर पंजाब को जलाने कि कोशिश हुई थी। कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड में हिंदू मंदिरों पर हमले किये गये।
अब अगला चरण जातीय जनगणना है। कोई भी गम्भीर एनालिस्ट इसे निर्थक कवायद कह सकता है।
इस दुनिया का कोई देश जनसंख्या अनुपात से सरकारी क्षेत्र भागीदारी तय नहीं कर सकता। कंपीटेंस का अपना महत्व है।
यदि ऐसा होता तो आज मार्क्सवाद सफल हो जाता। धनिकों के पैसे मजदूरों में बांटने वाले देश आज नष्ट हो गये। यह जरूर है यह कहने में अच्छा लगता है।
अब होना तो यह चाहिये था कि मंडल आयोग के प्रभावों पर रिसर्च होती। कैसे इस इल्यूजन ने एक बहुत बड़ी आबादी को मालिक से मजदूर बना दिया।
कैसे नाईयो के परम्परागत कार्य जिसके वह अधिकारसंपन्न थे। हबीब के सैलून में मजदूर बन गये।
कैसे फर्नीचर उद्दोग जिस पर लोहारों का कब्जा था। वह बड़ी बड़ी कम्पनियों ने हड़प लिया। फुटकर विक्रेता मुस्लिम बन गये और लोहार मजदूर बन गये।
कुछ चंद हजार सरकारी नौकरियों के लिये जातीय जनगणना से समाज को बिखण्डित कर उस फॉल्टलाइन को मजबूत किया जा रहा है। जिससे समाज और भी बिखण्डित हो जाय। हम एक दूसरे से लड़े, घृणा करें।
कर्नाटक चुनाव की विजय को कांग्रेस नेताओं ने भाजपा को दक्षिण से मुक्ति का नारा दिया है। यह संकेत है यह किसी राज्य कि विजय नहीं है। आने वाले समय मे बड़ी योजना का सूत्रपात हो रहा है। जँहा भाषा के आधार पर दक्षिण उत्तर को बांटा जायेगा। इसकी पूरी संभावना है कि दक्षिण में हिंदी भाषियों के विरुद्ध अभियान चले।
इस सारे घटनाक्रम में यहां के स्वार्थी नेताओं और विदेशी शक्तियों का हाथ है। जो सत्ता के लिये समाज, राष्ट्र को दांव पर लगा देते हैं।
